Monday 31 December 2012

मगध एवं अंग संस्कृति का संधिस्थल शेखपुरा

शेखपुरा मगध एवं अंग संस्कृति का संधिस्थल है। इस पवित्र धरती का संबंध महाभारत काल, पालवंश तथा मुस्लिम शासकों से जुड़ा है। लोकगाथाओं में वर्णित है। गिरीहिंडा पहाड़ पर हुंडा नामक दानवी से महापराक्रमी भीम ने गंधर्व विवाह किया। उनके पुत्र हुंडारक हुए। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने शेखपुरा के श्यामा पोखर पर रात्रि विश्राम किया था तथा मटोखर दहपर शिष्यों को उपदेश दिया था। पाल वंश के शासनकाल में शेखपुरा मुख्य प्रशासनिक केन्द्र था। मटोखर दह तथा पचना गांव में सरोवर तथा पचना पहाड़ पर खंडहर व पवनचक्की के अंश अभी भी विद्यमान है। मुस्लिम शासनकाल में शेखपुरा को कोतवाली का दर्जा मिला। बुजुर्गो के मुताबिक फरीद खान युवा काल में शिकार करते-करते शेखपुरा से 8 किलोमीटर पश्चिम उत्तर एक गांव में पहुंचे। रात्रि विश्राम किया। फरीदपुर आज भी है। यहीं शेर का शिकार करने के बाद उनका नाम शेरशाह पड़ा। धारणा है कि उन्होंने ही शहर के खांडपर पहाड़ को कटवाकर मार्ग बनवाया तथा पहाड़ से दक्षिण कुआं खुदवाया थाए जो आज दाल कुआं कहलाता है। इलाके का इतिहास अली इब्राहिम खान से लेकर अंतिम नवाब बाकर अली खान से जुड़ा है। कहते हैं। नवाब अली खान ने ठंड से परेशान सियारों में भी कम्बल बांटने का निर्देश दिया था। ब्रिटिश काल में शेखपुरा ने खान अब्दुल गफ्फार खान, डा.राजेन्द्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, रामधारी सिंह दिनकर, विनोबा भावे, डा. श्रीकृष्ण सिंह जैसे मनीषियों को अपनी ओर आकर्षित किया।
गिरिहिंडा पहाड़
 शेखपुरा को प्रकृति का अमूल्य वरदान हैं। इस पहाड़ की ऊंचाई लगभग 500 फीट है, जिसकी चोटी पर एक शिव मंदिर है। इसकी चोटी से नीचे देखने पर टेढी-मेढी नदियों के उजले रेत, बागीचों एवं उपवनों की झुरमुटे तथा लह-लहाते खेत अत्यंत ही मनोहर प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करता है। जिला प्रशासन द्वारा इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने हेतु इसके चोटी पर बाल उद्धान, कैंन्टीन, फव्वारा, हाई मास्ट लाईट तथा इसकी चोटी पर मोटरवाहन द्वारा पहुंचने हेतु 2200 फीट लम्बे पक्के सड़क का निर्माण कराया गया है।
पर्यटक स्थलों में शुमार होने की बाट जोह रहा मटोखर दह
प्रकृति की मनोरम गोद में अवस्थित शेखपुरा जिला का मटोखर दह (तालाब) एक पर्यटक स्थल होने की सारी अहर्ता रखने के बावजूद इस श्रेणी में शुमार होने की बाट जोह रहा है। टाटी नदी का किनारा और पहाड़ी इस क्षेत्र के अनुपम रूप में चार चांद लगा रही है। वैसे तो शेखपुरा के ईद-गिर्द अनेक मनमोहक स्थल है लेकिन पवित्रता एवं रमणीयता के कारण मटोखर दह एक अलग स्थान रखता है। इन दिनों मत्स्य विभाग इस तालाब को मछली उत्पादन के लिए कई खंडों में विभक्त कर रहा है, जो इस तालाब की विशालता व सौन्दर्य को कम कर रहा है।
मटोखर दह तालाब शेखपुरा जिला मुख्यालय से लगभग 7 किलोमीटर पश्चिम एवं शेखोपुरसराय प्रखंड से लगभग 9 किलोमीटर दूरी पर अवस्थित है। यहां जाने के लिए शेखपुरा से जीप, टमटम, रिक्शा आदि साधन मुहैया हैं। यह तालाब मटोखर नामक गांव के समीप है। इसलिए इसे मटोखर दह कहते है। इस दह के दक्षिण देवरा एवं पथरैटा तथा पश्चिम में लोदीपुर व ढेवसा सरीखे प्राचीन गांव बसे है। मटोखर दह का क्षेत्रफल एक किलोमीटर लम्बा एवं आधा किलोमीटर चौड़ा है। कालांतर में इसकी गहराई में कमी आयी है। पहले इसकी गहराई को लेकर तरह.तरह के कयास लगाये जाते थे। लोग एक छोर से दूसरे छोर तक जाने की शर्त लगाते थे, तैराकी की प्रतियोगिताएं होती थीं। इस तालाब को आर-पार करना कठिन माना जाता था। इस दह (तालाब) में कभी भी पानी नहीं सूखता था। सर्दी एवं गर्मी में अनेक प्रकार के प्रवासी पक्षी जल विहार करने आते थे। इस दह में कमल एवं कमलिनी का जाल बिछा थाए जो इसकी शोभा बढ़ाते थे। कमल के पत्तों का इस्तेमाल आसपास के गांवों में होने वाले भोज में पत्तल के रूप में किया जाता था। मटोखर गांव के लोगों एवं वहां के किसानों के लिए यह तालाब जीविका का साधन भी है। कृषि कार्य के लिए पूरे क्षेत्र में यह सिंचाई का एक मात्र साधन है। इस दह की रेहू मछली प्रसिद्ध है। इसलिए मत्स्य विभाग इस तालाब का तीन सालाना ठेका देता है। इतना ही नहीं मत्स्य विभाग ने दह (तालाब) को टुकड़ों व विभाजित कर दिया है जिससे इसकी विशालता व सौदर्य में कमी होनी शुरू हो गयी है। यह मटोखर दह हिन्दू-मुस्लिम आस्था का केन्द्र भी है। आज भी लोग यहां पिकनिक मनाने आते है। इस तालाब के निर्माण के संबंध में तरह-तरह की किदंतियां प्रचारित है। कुछ लोग इसे द्वापर काल में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम के आदेश पर ग्वाल बालों द्वारा खुदवाया मानते है। कुछ लोग इसे महाबली भीम द्वारा खुदवाया बताते है। कई इसे एक राजा द्वारा दही बेचने वाले के आग्रह पर खुदवाया गया बताते है।
'ख्वाजा बदरूद्दीनÓ नामक फकीर के कहने पर तालाब निर्माण की बात मानने वालों की भी कमी नहीं। प्रमाण के तौर पर तालाब किनारे अवस्थित दरगाह है जो मुस्लिमों एवं हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र है। जानकारों का कहना है कि तालाब के उत्तर और दक्षिण की ओर टीले हैए जो इसके वास्तु के लिहाज से द्वापरयुगीन होने की पुष्टि करते हैं। पूर्व में शेखपुरा के रह चुके जिलाधिकारी आनंद किशोर ने इसके सौंदर्यीकरण का प्रयास कियाए जो अधूरा ही रह गया। वर्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा सौंदर्यीकरण के प्रयास किये जा रहे है। बहरहाल जिला प्रशासन ने इस रमणीक स्थल के आस-पास के इलाके को पालिटेकनिक कालेज व केन्द्रीय विद्यालय खोले जाने के लिए चिह्नित किया है।
सोनरवा दुर्गा का मंदिर
दशहरा पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने का शेखपुरा में इतिहास ढाई सौ साल पुराना है। बताया जाता है कि शहर के स्वर्णकारों ने सबसे पहले सन 1760 के आसपास मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की थी। तब यहां के स्वर्णकार समाज के जाने-माने दाहू सोनार के परदादा ने प्रतिमा स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब वर्तमान में दाहू सोनार का कोई सदस्य शेखपुरा में नहीं है। सबसे पुरानी प्रतिमा के कारण सोनरवा दुर्गा को शेखपुरा की बड़ी महारानी का दर्जा प्राप्त है। पूजा समिति से जुड़े अशोक कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि आजादी के काफी साल पहले इस प्रतिमा के विसर्जन जुलूस की शोभा यात्रा को लेकर विवाद हुआ था तो इसका निर्णय इग्लैंड की तत्कालीन महारानी एलिजावेथ ने किया था तथा पूजा समिति के पक्ष का समर्थन किया था। सबसे पहले यह प्रतिमा मड़पसौना में स्थापित की गयी थी। बाद में स्वर्णकार समाज के लोगों ने 1960 के दशक के कमिश्नरी बाजार में स्थायी स्थान दे दिया।
उत्तर भारत का तिरूपती सामस का विष्णुधाम
शेखपुरा जिले बरबीघा थाना क्षेत्र के सामस गांव में स्थित है विष्ण की यह आदमकद प्रतिमा। यह प्रतिमा तिरूपती में स्थित बाला जी प्रतिमा से एक फीट अधिक उंची है तथा इसकी उंचाई सात फिट छह इंच है जिसकी वजह से यह विश्व में पूजी जाने वाली विष्णु की सबसे उंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा 1992 में तलाब की खुदाई के क्रम में निकली थी जिसके बाद ग्रामीण स्तर पर एक मंदिर बनाया गया तथा इसको लेकर अभियान चलाया जाने लगा। आखिरकर बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष किशोर कुणाल की नजर इस पर पड़ी और इसको लेकर पहल प्रारंभ कर दिया गया और आखिरकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां आकर लोगों को अश्वस्त किया कि इसका विकास पर्यटक क्षेत्र के रूप में किया जाएगा। इस प्रतिमा की खासीयत यह है कि यह पाल काल का बना हुआ बताया जाता है तथा विष्णु के हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म भी है। इसके विकास को लेकर स्थानीय सांसद भोला ंिसह के द्वारा भी संसद में सवाल उठाया गया था। ठसी को लेकर उत्तर बिहार के तिरूपती कहे जाने वाले जिले के बरबीघा के सामस गांव में स्थित विष्णु की भव्य प्रतिमा को देखने तथा यहां पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां का दौरा किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रतिमा स्थल को विकसीत कर उसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार के तिरूपती के रूप में विकसीत कर इस क्षेत्र के विकास को लेकर अगले माह में पटना में एक विशेष बैठक बुलाई जाएगी जिसमें मंदिर विकास कमिटि के लोग, जिला प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधी तथा धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के अलावा पुरात्तव से जुडे लोगों के साथ बैठक कर मंदिर के विकास की रूपरेख तय की जाएगी।


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