Tuesday 11 December 2012

तीर्थों का मुख पुष्कर

पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। यहां का मुख्य मंदिर ब्रम्हाजी का है,जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी दूरी पर है। ब्रम्हाजी की दाहिनी ओर सावित्री और बांयी ओर गायत्री का मंदिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियां है,तो एक छोटे से मंदिर में नारद जी की मूर्ति। एक मंदिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियां है। पुष्कर में दुनिया के सबसे बड़े ऊंचे ऊंट मेले के रूप में जाना जाता है। यह मेला सैलानियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता है। राजस्थान में स्थित पुष्कर तीर्थ स्थल न केवल अपने धार्मिक महत्व के कारण जाना जाता है, बल्कि इस तीर्थ स्थल का प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक वातावरण में मेला का आयोजन इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा देता है।
राजस्थान में कई पर्यटन स्थल है। जिनमें से पुष्कर एक है। पुष्कर झील अजमेर नगर से ग्यारह किमी उत्तर में स्थित है। पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है।
 पुष्कर को वेदमाता गायत्री की स्थली भी है। यह कई देवी-देवताओं की धर्म स्थली भी यही स्थान है। इस स्थल के महत्व को इसी बात से जाना जा सकता है, कि पुष्कर तीर्थो में गुरु कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है, जब तक की पुष्कर की यात्रा न की जायें। इसे पांचवाम धाम कहना कुछ गलत न होगा।
पुष्कर में प्रतिवर्ष दो बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है,  जिसमें से एक मेला अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति प्राप्त है। यहां के मेले न केवल मेल-मिलाप के संयोग देते है साथ ही यह राजस्व कर के बड़े स्त्रोत है। इनमें से पहला मेला कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरु होकर, कार्तिक मास की पूर्णिमा तक रहता है। दूसरा मेला वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक रह्ता है। इन मेलों का प्रारम्भ पुष्कर झील की छतरी पर ध्वजारोहण व महा आरती से होती है। पुष्कर मेला राजस्थान की लोक संस्कृति का झलक देता है। इस धार्मिक मेले के अंतिम दिन तीर्थनगरी पुष्कर में लाखों की संख्या में लोग आते है। मेले में शामिल होने आये लोग इस झील सरोवर में स्नान कर स्वयं को धन्य करते है। इस मेले की प्रतिक्षा केवल भारत के विभिन्न राज्यों के निवासी ही नहीं, बल्कि अमेरिका,फ्रांस, ब्रिटेन, स्पेन, जर्मनी, आस्ट्रेलिया और पौलेण्ड के निवासियों भी करते है। राजस्थान की लोक सांस्कृतिक, रंगारंग कार्यक्रम और मेले में, अलग-अलग तरह के झूले लोगों को सदा से ही अपनी ओर आकर्षित करते रहे है।
इतिहास पर एक नजर
तीर्थराज पुष्कर भारत के प्राचीनतम नगरों में से एक है। कहते हैं कि हड़प्पा और
मोहनजोदड़ों महानगर के निर्माण में पुष्कर के खानों से सीसा भेजा जाता था। लिहाजा कह सक ते हैं कि  पुष्कर राजस्थान का डिस्ट्रिस्टगजेरिया यानी सिंधु घाटी की सभ्यता से भी प्राचीन था। पद्म पुराण के  अनुसार ब्रह्मा ने पुष्कर तीर्थ की स्थापना से सृष्टि के  निर्माण का शुभारंभ कि या। इसे धरती क ा के ंद्र मानते हैं। वाल्मीकि  रामायण में वर्णन है कि  मेनक ा अप्सरा ने पुष्क र सरोवर में स्नान कर विश्वामित्र को सम्मोहित किया था। कालिदास की महानायिका शकुंतला का जन्म यहीं हुआ। गायत्री मंत्र की रचना पुष्कर में हुई। इसी तरह मार्कण्डेय ऋषि ने 'महामृत्युंजय मंत्रÓ क ी रचना यहीं क ी। दशावतार में मत्स्य, कू र्म और वराह अवतार भी पुष्क र में हुए। भगवान श्रीराम भी पधारे यहां गरु ड़, पद्म, हरिवंश पुराणों के  अनुसार भगवान राम दो बार पुष्कर भी आए थे।  दशरथ का श्राद्ध क रने, अगस्त्य ऋ षि से समुद्र सोखने और लंक ा विजय क ी मंत्र दीक्षा लेने। वह स्थान आज भी राम झरोखा के नाम से मशहूर है। राजस्थानी निजाम के अनुसार, 'आदित्य हृदय स्त्रोतÓ क ी दीक्षा पुष्क र में ही दी थी। भगवान कृ ष्ण ने भी पुष्कर प्रवास कि या था। उनसे जुड़े स्थान नंदगांव, गोकु ल, क ान्ह हथाई आज भी स्थित हैं। पुष्क र तीर्थ पर अनुसंधान क रने वाले आचार्य पं. ठाकु र प्रसाद पराशर ने विभिन्न प्राचीन धर्म ग्रंथों से साक्ष्य प्रमाणित कि ए हैं। इनके अनुसार 'महाभारतÓ में युधिष्ठिर क ी पुष्क र यात्रा क ा उल्लेख है। टोंक  के  प्रो. शिव शर्मा और डॉ. शरद हेवालक र के अनुसार, पुष्क र क भी बौद्ध और जैन धर्माचार्यों क ा पवित्रधाम था। जैन विद्वान इसे पद्मावती नगरी क हते थे। प्राचीन शिला लेखों में इसे क ोंक ण तीर्थ क हा गया है। क भी पुष्क र में बौद्ध विश्वविद्यालय हुआ क रता था। पुष्क र क ी संघरक्षिता बुढऱक्षिता ने सांची के  स्तूपों में प्रकोष्ठ बनवाए। पुष्क र में गुरु नानक , गुरु गोविन्द सिंह, स्वामी दयानंद सरस्वती से लेक र महात्मा गांधी तक  पधारे। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार हूण तोरमण ने पुुष्क र झील क ो मिट्टी से पाट दिया। बाद में मंडोर के  राजा नाहर राव परिहार ने उत्खनन क र प्रतिष्ठित कि या। मुगल शासक ों क ो प्रिय था पुष्क र मुगल शासक ों क ो पुष्क र क ाफ ी रास आया। जहांगीर क ो तो पुष्क र इतना भाया कि  उसने तेरह बार पुष्क र क ी यात्राएं क ी और यहां के  पंडितों क ो जागीरें दान दीं। आज भी पुष्क र झील के  दूसरे कि नारे जहांगीर द्वारा निर्मित बारहदरियां नजर आती हंै। शाहजहां भी पुष्क र के  पंडितों क ा खासा सम्मान क रता था। उसने भी पंडि़तों क ो लाखों रु पए दान में दिए। जहांगीर ने ही यहां पशु मेेला प्र्रारंभ कि या। गुर्जरों के आराध्य देवनारायण ने पुुष्क र के  नाग पहाड़ पर आराधना क ी। गुर्जर तो पुष्क र क ो श्रेष्ठतम तीर्थ मानते हैं। वर्तमान में ब्रह्मा मंदिर, जिसे औरंगजेब ने ध्वस्त कि या था। उसे १८०९ अजमेर के मराठा सूबेदार दौलतराव सिंधिया के  मंत्री ने बनाया। आश्चर्य तो यह है कि  ब्रिटेन क ी महारानी मेरी क ा पुष्क र पर ऐसा दिल आया कि उन्होंने यहां जनाना घाट तक बनवा दिया। बदलते वस्त के साथ पुष्क र भी बदल गया है। आज तीर्थराज पुष्क र विदेशी यात्रियों क ी मौज-मस्ती क ा के ंद्र बन गया है, जिससे क ई विकृ तियां पैदा होने लगी हैं। पुष्क र में पानी भी क म हो गया है। जगह-जगह कुं ड बनाक र बोरवैलों से पानी भरना पड़ता है। क भी पुष्क र के  वास घने वन थे। नाग चंपा के इतने फू ल होते कि  पुुष्क र महक ता था।
पुष्कर पशु मेला
पुष्कर में शुरु होना वाला पुष्कर मेला, पुष्कर पशु मेले के नाम से भी जाना जाता है। इस मेले में देश-विदेश से सैलानी वस्तुएं खरीदने और बेचने आते है। विशेष रुप से यह मेला ऊंट मेले के क्रय-विक्रय के लिये प्रसिद्ध है। इस मेले में पशु पालकों को विभिन्न नस्ल के पशु उपलब्ध होते है। अभी भी भारत की कृषि पशु पर आश्रित है। मेले में पशु की दौड़ प्रतियोगिता होती है और अन्य प्रतियोगिताएं भी आरम्भ से आकर्षण का केन्द्र रही है। इन प्रतियोगिताओं में अश्व प्रतियोगिता, ऊंट प्रदर्शन आदि किये जाते है। प्रतियोगिता से पहले ही उंटों के खान-पान, सेहत और साज-सज्जा का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऊंटों की दौड़ में विजयी होने पर बड़े-बड़े ईनामों की घोषणा की जाती है। मेले के दिनों में ऊंट और घोड़ों की दौड़ खूब पसन्द की जाती है। मेले में लगने वाली दुकानें, झूले और कलाकारों के हस्त शिल्प की वस्तुओं कि प्रशंसा में शब्द भी मौन हो जाते है। सैलानियों के द्वारा ऊंट और जानवरों की सवारी का आनंन्द लेना, लोक संस्कृति और लोग संगीत की ध़ुनों पर थिरकते लोग समां बांध देते है। यह मेला अपने आकर्षण के कारण अन्तर्राष्ट्रिय ख्याति प्राप्त कर चुका है। धीरे-धीरे समय बीतने एक साथ-साथ यह मेला एक खूबसूरत पर्यटन मेले का रुप ले चुका है। अच्छी नस्ल के जानवरों का सौदा करने के लिये यह स्थान सर्वश्रेष्ठ बन गया है।  यहां पर पशुओं की कीमत अच्छी मिल जाती है। यहां आकर ग्रामीण जीवन की संस्कृति को करीब से जाना जा सकता है।       
पुष्कर मंदिरों की नगरी
पुष्कर मेले का माहौल किसी तीर्थ स्थल जैसा है। यहां पर राजस्थान के पारम्परिक व सांस्कृतिक वेश-भूषा मेम सजे देशी-विदेशी कलाकार अपनी कला प्रदर्शित करते रहते है। साधू संतों का जमावड़ा यहां देखा जा सकता है। पुष्कर की सुबह काशी तीर्थ स्थल की सुबह से कम सुन्दर नहीं होती। आरतियों की गूंज और घंटियों का अनाहाद हर किसी क अपनी ओर खींच लेता है।  
आकर्षण का केंद्र
पुष्कर मेला थार मरूस्थल का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है। वैसे तो इस मेले का खास आकर्षण भारी संख्या में पशु ही होता है। फिर भी पुष्कर में भ्रमण के लिए यहां स्थित ४०० मंउिा है तथा जगह-जगह स्थित ५२ घाट पुष्कर के खास आकर्षण हैं। बदलते दौर के चलते यहां देश-विदेश से आये पर्यटकेां के बिीच क्रिकेट मेच,यहां के पारंपरिक नृतय,गीत संगीत,रंगोली,यहां के काठ पुतली नृत्य आदि भी इस मेले के विशेष आकर्षणों में शामिल है। इस मेले में ऊंट अथवा अन्य घरेलू जानवरों की क्रय-बिक्री के लिए लाए जाते हैं। इसे ऊॅंटों का मेला भी कहा जाता है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते है तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें,खाने-पीने के स्टाल,सर्कल,झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला रेगिस्तान से नजदीकी को बताता है। इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने का मिलते ही हैं। देश-विदेशी सैलानियों को यह मेला इसलिए लुभाता है,क्योंकि यहां उम्दार जानवरों का प्रदर्शन तो होता ही  है,राजस्थान की कला-संस्कृति की अनूठी झलक भी मिलती है। लोक संगीत और लोक धुनों की मिठास भी पर्यटकों को काफी लुभाती है। वैसे यहां सैलानियों के लिए मटका फोड़,लंबी मूंछ,दुल्हन प्रतियोगिता जैसे कार्यक्रम भी मेला आयोजकों द्वारा किए जाते हैं। इस मेले में विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में भाग तो लेते ही हैं साथ ही साथ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं।

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