Sunday 23 December 2012

पर्यटन का गढ़ छत्तीसगढ़

प्रकृति की गोद में बसा छत्तीसगढ़ भारत के हृदय स्थल में स्थित है। छत्तीसगढ़ प्राचीन कला, सभ्यता, संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है। धर्म कला व इतिहास की त्रिवेणी अविरल रूप से प्रवाहित होती रही है। हिंदुओं के आराध्य भगवान श्रीराम राजिम व सिहावा में ऋषि-मुनियों के सानिध्य में लंबे समय तक रहे और यहीं उन्होंने रावण वध की योजना बनाई थी। त्रिवेणी संगम पर राजिम कुंभ को देश के पांचवें कुंभ के रूप में मान्यता मिली है। वहीं, सिरपुर की ऐतिहासिकता बौद्ध आश्रम, रामगिरी पर्वत, चित्रकूट, भोरमदेव मंदिर, सीताबेंगरा गुफा स्थित जैसी अद्वितीय कलात्मक विरासतें छत्तीसगढ़ को अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान कर रही है। भारत के दिल में बसा छत्तीसगढ़  प्राकृतिक सुंदर नजारों के साथ-साथ पुरानी गुफाएं, ऊंची पहाडिय़ां और हवा के संग-संग बहती नदियां आपको अपनी तरफ बरबस ही खींच लेंगी। छत्तीसगढ़ को कुदरत ने प्राकृतिक सौंदर्य तोहफे में पेश किया है। तभी तो यह एक ही नजर में सभी को लुभा लेता है। यहां की हरी-भरी वादियां, घने जंगल, मस्त बहतीं नदियां, पुरानी गुफाएं और मन में श्रद्धा जगाते अद्भुत मंदिर आपके दिलो-दिमाग पर इस कदर छाएंगे कि छत्तीसगढ़ की यह छवि आपकी आंखों में हमेशा के लिए बस जाएगी और आप बार-बार इस प्रदेश में घूमने के बारे में सोचेंगे। यहां ज्यादा नदियां और गुफाएं नहीं हैं, लेकिन जितनी भी हैं, वे लगातार पर्यटकों के आकर्षण केंद्र बनी रहती हैं। इनमें जैशपुर में कॉटेबिरा एब रिवर और कैलाश गुफा, बस्तर में कुटुमसार गुफाएं और कैलाश गुफा वगैरह मशहूर हैं। पर्वतों को चीरकर बनी ये गुफाएं, और नदियां आपका ध्यान कहीं और जाने ही नहीं देती हैं। यहां के मॉन्युमेंट्स आपके सामने इतिहास की छवि उकेरने में पूरी तरह सक्षम हैं। अगर आप ऐतिहासिक जगह पर घूमना पसंद करते हैं, तो छत्तीसगढ़ आपके लिए सही चॉइस है। यहां आपको बहुत से किले और स्तूप देखने को मिल जाएंगे। इनमें कावर्धा पैलेस, बिलासपुर में कूटाघाट डैम और खडिय़ा डैम, शिवा बारामूडा टेंपल, सरोदा और रतनपुर का किला प्राचीन आर्किटेक्चर की जीती-जागती तस्वीर है। रंग-बिरंगे छत्तीसगढ़ में मेले और त्योहारों का अलग ही मजा है। दशहरे पर रावण के पुतले जलाकर नहीं, बल्कि दंतेश्वरी देवी की पूजा करके मनाया जाता है। दंतेश्वरी देवी का मंदिर जबलपुर में स्थित है, यहां इन दिनों बड़ा मेला लगता है। इसके अलावा, राजीवलोचन महोत्सव भी यहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। तब यहां 15 दिनों तक एक मेला भी लगता है। यही नहीं भागोरिया, चक्रधार, गोंचा, कजरी, नारायणपुर, हरियाली कोरा आदि फेस्टिवल भी यहां का मुख्य आकर्षण हैं।
धर्मों का संगम स्थल
अगर आप धार्मिक स्थलों की यात्रा करना चाहते हैं, तो यहां आपको एक से एक भव्य मंदिर देखने को मिलेंगे। यहां के मशहूर मंदिरों में गंडेश्वर टेंपल, चंपारण, लक्ष्मण मंदिर, राजीवलोचन मंदिर, राम टेकरी, केदार, आनंद प्रभु कुड़ी विहार, शिवानी मंदिर और दंतेश्वरी मंदिर शामिल हैं। यहां कई भगवानों की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। आप स्वस्तिक विहार भी जरूर जाएं, जहां बौद्ध अनुयायी ध्यान लगाते हैं।
लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किमी की दूरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ रामायण कालीन शबरी उद्धार और लंका विजय के निमित्त भ्राता लक्ष्मण की विनती पर श्रीराम ने खर और दूषण की मुक्ति के पश्चात 'लक्ष्मणेश्वर महादेवÓ की स्थापना की थी।
यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर 110 फीट लंबा और 48 फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर 48 फुट ऊँचा और 30 फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है। मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह मे एक विशिष्ट शिवलिंग की स्थापना है। इस शिवलिंग की सबसे बडी विशेषता यह है कि शिवलिंग मे एक लाख छिद्र है इसीलिये इसका नाम लक्षलिंग भी है। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं।
छत्तीसगढ़ शैव,वैष्णव,बौद्ध और जैन धर्मों का संगम स्थल है। यहां सदियों पुरानी प्रतिमायें छत्तीसगढ़ के गौरव की साक्षी है। इसी तरह बिलासपुर जिले के मनियारी नदी के तट पर बसे तालाग्राम में देवरानी जेठानी का मंदिर और रूद्रशिव की प्रतिमा जिसके शरीर के अंगों पर जानवरों की आकृतियों विभूषित हैं कई रहस्यों को समेटे हुए है। छत्तीसगढ़ के खजुराहो भोरमदेव कामंदिर अद्भूत मादकता और माधुर्य से देखने वालों का मन मोह लेता है। दुर्ग जिले के प्राचीन शिव मंदिर देव बलौदा और नागपुरा के सात ही राजनांदगांव के गंडई शिवमंदिर का शिल्प और स्थापत्य कला अनूठी है। नगपुरा में जैन तीर्थकंर पाश्र्वनाथ की पूजा नाग देवता के रूप में की जाती है। वहीं डोंगरगढ़ पहाड़ी पर मां बम्लेश्वरी मंदिर की महिमा ही निराली है। धमधा में आदिवासियों के आराध्य बुढ़ादेव का मंदिर है तो झलमला में गंगा मैय्या का । नैसर्गिक और प्राकृतिक कौमार्य छत्तीसगढ़ का आकर्षक पहलू है। पाषाण संस्कृति के साथ ही मानव उत्थान के पद चिन्ह यहां मौजूद है ।
पशु-पक्षियों को जिंदगी जीते देखे
अगर आप नेचर और वाइल्डलाइफ  लवर हैं, तो छत्तीसगढ़ में आपके लिए तमाम नजारे हैं। अलग-अलग तरह के पशु-पक्षियों के लिए यहां 3 नैशनल पार्क और 11 वाइल्ड लाइफ  सेंचुरी हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ घूमने का प्लान बना रहे हैं, तो यहां की वाइल्ड लाइफ  से बचकर निकलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। इंद्रावती नेशनल पार्क, कंगेर घाटी नेशनल पार्क और गुरु घासीदास नेशनल पार्क में आपको चिंकारा, चीतल और हिरण के अलावा तमाम जानवर अपने हिसाब से जिंदगी जीते दिख जाएंगे।
बारनावापारा वन्य जीवन अभयारण्य
बारनावापारा वन्य जीवन अभयारण्य इस क्षेत्र का एक उत्कृष्ट और महत्वपूर्ण वन्य जीवन अभयारण्य है। बारनावापारा वन्य जीवन अभयारण्य अपनी हरी भरी वनस्पति और अनोखे वन्य जीवन के कारण जाना जाता है। यहां बारनावापारा वन्य जीवन अभयारण्य में पाए जाने वाले प्रमुख वन्य जंतु हैं बाघ, स्लॉथ बीयर, उडऩे वाली गिलहरी, भेडि़ए, चार सींग वाले एंटीलॉप, चीते, चिंकारा, ब्लैक बक, जंगली बिल्ली, बार्किंग डीयर, साही, बंदर, बायसन, पट्टी दार हाइना, जंगली कुत्ते, चीतल, सांभर, नील गाय, गौर, मुंट जेक, जंगली सुअर, कोबरा और अजगर आदि कुछ प्रमुख हैं। इस अभयारण्य में बड़ी संख्या में पक्षी पाए जाते हैं जिनमें से प्रमुख तोते, बुलबुल, सफेद रम्पयुक्त गिद्ध, हरे आवादावात, लेसर केस्ट्रेल, पी फाउल, कठफोड़वा, रेकिट टेल वाले ड्रोंगो, अगरेट, हेरॉन्स आदि हैं।
इंद्रावती नेशनल पार्क
इंद्रावती नेशनल पार्क छत्तीसगढ़ का सबसे अधिक परिष्कृत और सबसे अधिक प्रसिद्ध वन्य जीवन उद्यान है। यह राज्य का एक मात्र टाइगर रिजर्व है। इंद्रावती नेशनल पार्क देंतेवाड़ा जिला में स्थित है यह पार्क इंद्रावती नदी के नाम पर बनाया गया है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा महाराष्ट्र राज्य के साथ इस संरक्षित वन की उत्तरी सीमा बनाती है। यहां लगभग 2799.08 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल है। इंद्रावती को 1981 में नेशनल पार्क का दर्जा दिया गया है और इसे 1983 के दौरान भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध टाइगर रिजर्व बनाने के लिए भारत की प्रसिद्ध प्रोजेक्ट टाइगर नामक योजना के तहत टाइगर रिजर्व घोषित किया गया है। इंद्रावती नेशनल पार्क के प्रमुख वन्य जीवन में दुर्लभ प्रकार के जंगली भैंसे, बारह सिंगा, बाघ, चीते, सांभर, चार सींग वाला एंटीलॉप, स्लॉथ बीयर, जंगली कुत्ते, पट्टीदार हाइना, मुंटजेक, जंगली सुअर, उडऩे वाली गिलहरियां, साही, पेंगोलिन, बंदर और लंगूर के अलावा अन्य अनेक पाए जाते हैं।
सीतानंदी अभयारण्य
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित सीतानंदी वन्य जीवन अभयारण्य मध्य भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण वन्य जीवन अभयारण्य में से एक है। अत्यंत ऊंचे नीचे पहाड़ और पहाड़ी तराइयां हैं जिनकी ऊंचाई 327-736 मीटर के बीच है। यह सुंदर अभयारण्य सीतानंदी नदी के नाम पर बनाया गया है, जो इस अभयारण्य के बीच से बहती है और देव कूट के पास महानदी नामक नदी से जुड़ती है। सीता नंदी अभयारण्य में जाने पर पर्यटकों को सभी प्रकार के वन्य जीवन का एक मनोरंजक और अविस्मरणीय अनुभव मिलता है, खास तौर पर प्रकृति से प्रेम करने वालों और अन्य जीवन के शौकीन व्यक्तियों को।
उदांती अभयारण्य
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित उदांती वन्य जीवन अभयारण्य एक छोटा किन्तु महत्वपूर्ण वन्य जीवन अभयारण्य है। इसकी स्थापना वन्य जीवन संरक्षण अधिनियमए 1972 के तहत 1983 में की गई थी। यह अभयारण्य लगभग 232 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्र में फैला है। इस अभयारण्य की स्थलाकृति में भूमि के छोटे-छोटे हिस्से हैं जिनके बीच मैदानी हिस्सों के साथ छोटी छोटी असंख्य पहाडियां हैं। यह सुंदर अभयारण्य पश्चिम से पूर्व के ओर बहने वाली उदांती नदी के नाम पर बनाया गया है जो इस अभयारण्य के अधिकांश भाग में बहती है। उदांती वन्य जीवन अभयारण्य जंगली भैंसों की आबादी के लिए प्रसिद्ध है जो खतरे में है। इनकी उत्तरजीविता और वृद्धि के लिए वन विभाग के अधिकारियों द्वारा कई कदम उठाए गए हैं। यहां पूरे अभयारण्य में अनेक मानव निर्मित तालाब है। उदांती वन्य जीवन अभयारण्य के दौरे पर जाकर आप ढेर सारे जंतुओं और पक्षिओं को इनकी प्राकृतिक स्थिति में देखने का आनंद उठा सकते हैं। वन्य जीवन को देखने का शौक रखने वाले, पक्षियों के प्रेमियों और प्रकृति से प्रेम करने वाले लोगों के लिए उदांती वन्य जीवन अभयारण्य का भ्रमण एक अविस्मरणीय तथा शानदार अनुभव होगा।
कांगेर घाटी नेशनल पार्क
यह कांगेर घाटी की 34 किलो मीटर लंबी तराई में स्थित है। यह एक बायोस्फीयर रिजर्व है। कांगेर घाटी नेशनल पार्क भारत के सर्वाधिक सुंदर और मनोहारी नेशनल पार्कों में से एक है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अनोखी तथा समृद्ध जैव विविधता के कारण मशूर है। वन्य जीवन और पेड़ पौधों के अलावा पार्क के अंदर पर्यटकों के लिए अनेक आकर्षण हैं जैसे कुटुम सार की गुफाएंए कैलाश गुफा, डंडक की गुफा, और तीर्थगढ़ जल प्रपात। छत्तीसगढ़ के सर्वोत्तम वन्य जीवन का दर्शन करने का इच्छुक लोगों के लिए यह एक आदर्श पर्यटन स्थल है, जहां क्षेत्र की अनोखी जनजातियों को भी देखा जा सकता हैं।
इसके अलावा इस प्रदेश में अचानकमार वन्य जीवन अभयारण्य,भोरमदेव अभयारण्य,गुरु घासीदास नेशनल पार्क,गुरु घासीदास नेशनल पार्क,बादलखोल वन्य जीवन पार्क,पामेडा वन्य जीवन अभयारण्य आदि हैं जो पर्यटकों को प्रकृति में डूबने का अहसास कराते हैं।
छत्तीसगढ़ का कश्मीर : चैतुरगढ़
अलौकिक गुप्त गुफा, झरना, नदी, जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी और औषधीय वृक्ष कंदलओं से परिपूर्ण होने की वजह से चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है। क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में भी यहां का तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेट से ज्यादा नहीं रहता है। अनुपम अलौकिक, प्राकृतिक छटा का वह क्षेत्र दुर्गम भी है। बिलासपुर कोरबा रोड के 50 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक जगह पाली है जहां से करीब 125 किलोमीटर दूर लाफा है। लाफा से 30 किलोमीटर ऊंचाई पर है चैतुरगढ़। चैतुरगढ़ में आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, शंकर खोल गुफा दर्शनीय एवं रमणीय स्थल है। इस पर्वत श्रृंखला में चामादहरा, तिनधारी और श्रृंगी झरना अद्वितीय सुंदर है। इस पर्वत श्रृंखला में जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल भी है। इसी नदी के आगे तट पर तुम्माण खोल प्राचीन नाम माणिपुर स्थिर है जो कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी। पौराणिक कथा के अनुसार मातेश्वरी ने चामर चक्षुर, वाण्कल विड़ालक्ष एवं महाप्रतापी महिषासुर का संहार कर कुछ पल इस पर्वत शिखर पर विश्राम पर देवों को मनवांछित वर प्रदान कर माणिक द्वीप में अंतध्र्यान हो गई थी। दुर्गम पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से कई वर्षों तक यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय राजा मल्लदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद जाज्वल्बदेव ने भी मंदिर और किले का जीर्णोद्धार करवाया था। चैतुरगढ़ किले के चार द्वार बताये जाते हैं जिसमें सिंहद्वार के पास महामाया महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है तो मेनका द्वार के पास है शंकर खोल गुफा। मंदिर से तीन किलोमीटर दूर शंकर खोल गुफा का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना है। कहते हैं कि पर्वत के दक्षिण दिशा में किले का गुप्त द्वार है जो अगम्य है। किंवदंती के अनुसार आदि शक्ति मां महिषासुर मर्दिनी इसे गुप्त द्वार से ही गुप्त पुरी माणिक द्वीप में अंतध्र्यान हुई वहीं धनकुबेर का खजाना इसी द्वार से लाया जाता रहा है। अपने अलौकिक प्राकृतिक छटा के साथ ही चैतुरगढ़ ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, स्थलों के रूप में प्रसिद्ध है। दुर्गम पहाड़ी पर पर्यटन का अपना अलग ही आनंद है। चैतुरगढ़ की तलहटी पर लाफा में प्राचीन महामाया मंदिर और बूढ़ारक्सादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। पाली में नौकोनिया तालाब के तट पर प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर की स्थापत्य कला आबू के जैन मंदिरों की तरह अद्भूत है। जालीदार गुम्बज एवं स्तम्भों में उत्कीर्ण मूर्तियां कलात्मक एवं सुंदर है। पाली में पर्यटकों के विश्राम हेतु पर्यटन मंडल ने विश्राम गृह का निर्माण किया है।

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