Thursday 27 December 2012

बिहार भ्रमण-2 : शिवहर तिरहुती और मैथिल संस्कृति की गंध



शिवहर तिरहुती और मैथिल संस्कृति की गंध है। शादी-विवाह या अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों पर वैदेही सीता और भगवान श्रीराम के विवाह के गीत यहाँ बड़े ही रसपूर्ण अंदाज में गाए जाते हैं। जट-जटिन तथा झिझिया शिवहर जिले का महत्वपूर्ण लोकनृत्य है। जट.जटिन नृत्य राजस्थान के झूमर के समान है। झिझिया में औरतें अपने सिर पर घड़ा रखकर नाचती हैं और अक्सर नवरात्र के दिनों में खेला जाता है। छठ, होली, दिवाली, दुर्गापूजा, मुर्हम, ईद जैसे पर्व हिंदू और मुस्लिम के द्वारा मिलजुलकर मनाए जाते हैं। देवकुली बौद्धायान-सार और शुकेश्वर स्थान आदि यहां के प्रमुख स्थलों में से शिवहर बिहार राज्य का एक जिला है। देवकुली, बौद्धायानसार और शुकेश्वर स्थान आदि यहां के प्रमुख स्थलों में से है। इसका जिला मुख्यालय शिवहर शहर है। पूर्व समय में यह जिला सीतामढ़ी जिले का एक हिस्सा था। लेकिन 1994 ई. में इसे अलग जिले के रूप में घोषित कर दिया गया। इसे जिले को शिहोर के नाम से भी जाना जाता है।  शिवहर पहले रामायण काल में मिथिला फिर महाजनपद काल में वैशाली के गौरवपूर्ण बज्जिसंघ का हिस्सा रहा।
 पर्यटक स्थल
देवकुली : मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं भुवनेश्वर नाथ
जिला मुख्यालय से 5 किलो मीटर पूरब देकुली धाम स्थित बाबा भूवनेश्वर नाथ मंदिर जिले की पौराणिक धरोहर के साथ जिले व आस-पास के लोगों के आस्था का केंद्र हैं। द्वापर काल में निर्मित इस मंदिर में शिवहर के पड़ोसी जिलों के साथ-साथ नेपाल के लोग पूजा-अर्चना व जलाभिषेक करने आते है। मंदिर के धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि मंदिर एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है। इसमें स्थापित शिवलिंग भगवान परशुराम की तपस्या से प्रकट हुआ जो ओद काल से बाबा भुवनेश्वर नाथ के नाम से ही प्रचलित है। शिवलिंग के अरघा के नीचे अनंत गहराई है, जिसे मापा नही जा सकता। वही मंदिर के गुंबज के नीचे प्रस्तर में श्रीयंत्र स्थापित है। मान्यता है कि जो कोई भी जलाभिषेक के बाद श्री यंत्र का दर्शन करता है, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। जानकारों का कहना है कि 1956 में प्रकाशित अंगरेजी गजट में इस धाम की चर्चा करते हुए उल्लेख किया गया था कि नेपाल के पशुपति नाथ एवं भारत के हरिहर क्षेत्र मंदिर के मध्य में देकुली बाबा भुवनेश्वर नाथ मंदिर स्थित है। कलकत्ता के हाई कोर्ट के एक अहम फैसला में भी अति प्राचीन बाबा भुवनेश्वर मंदिर देकुली धाम उल्लिखित है। ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यकाल में चैकीदारी रसीद पर भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। ग्रामीण बताते है कि मंदिर के पश्चिम एक तालाब है जिसकी खुदाई 1962 ई में चैतन्य अवतार जिले के छतौनी गांव निवासी महान संत प्रेमभिक्षु जी महाराज ने करायी थी। जिसमें द्वापर काल की दुर्लभ पत्थर व धातु की मूर्तियां प्राप्त हुई थी। जिसे मंदिर प्रांगण के मुख्य द्वार के दाहिने तरफ अति प्राचीन मौल श्री वृक्ष के पास स्थापित की गयी है। जमीन के सामान्य स्तर से करीब 15 फीट उपर एक टिला पर अवस्थित उक्त शिव मंदिर के उत्तर-पश्चिम कोने में माता पार्वती, दक्षिण में भैरव नाथ एवं पूरब-दक्षिण कोण में हनुमान जी का मंदिर है।
मंदिर से पूरब करीब 12 फीट नीचे खुदाई करने पर ग्रेनाइट पत्थर से बना भग्नावशेष प्राप्त हुआ था, जिसके अग्रवाहु की लंबाई करीब 18 इंच से अधिक थी। पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इस मंदिर के खुदाई पर तत्काल रोक लगी है। इसके पौराणिक एवं धार्मिक महत्व के बारे में कहा जाता है कि भगवती सीता के साथ पाणि ग्रहण संस्कार के उपरांत जिस स्थान पर राम को परशुराम के कोप का शिकार होना पड़ा वह जगह कोपगढ़ गांव के नाम से जाना जाने लगा, जहां परशुराम का मोहभंग हुआ वहां मोहारी गांव वसा हुआ है। राम एवं परशुराम के बीच आपसी प्रतीती के पश्चात परशुराम ने राम को भुवनेश्वर नाथ अर्थात शिव के दर्शन कराये जिस कारण शिव एवं हरि का यह मिलन क्षेत्र शिवहर के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि शिव का घर से भी शिवहर नाम प्रचलित होने की बात कही जाती है। वही द्वापर काल में कुलदेव को द्रोपदी द्वारा संपूजित किये जाने के कारण इस जगह का नाम देकुली पड़ा। हालांकि इस बारे में अन्य कई काथाएं प्रचलित है। धाम से सटे उत्तर में युधिष्ठिर के ठहरने के उपरांत 61 तालाब खुदवाये गये थे जो विभिन्न नामों से प्रचलित था, जो बागमती नदी के कटाव में अस्तित्व विहीन हो गया।
बौद्धायान-सार : यह एक धार्मिक स्थल है। कहा जाता है कि महर्षि बौद्ध ने इसी स्थान पर कई महाकाव्य लिखे थे। प्रसिद्ध व्याकराणिक, पाणिनी महर्षि बौद्ध के शिष्यों में से एक थे। प्रसिद्ध संत देवराह बाबा ने लगभग 18 वर्ष पूर्व यहां पर बौद्धायन मंदिर की स्थापना की थी।
शुकेश्वर स्थान : सीतामढ़ी शहर के उत्तर.पश्चिम से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर शुकेश्?वर स्थान स्थित है। इस जगह पर महान् संत शुकदेव मुनि पूजा किया करते थे। यहां पर भगवान शिव का एक विशाल और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को शुकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। प्रसिद्ध संत शुकदेव मुनि के नाम पर ही इस मंदिर का नाम रखा गया था। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं।
बरगद का वृक्ष: पुरनहिया प्रखंड के गांव बसंत जगजीवन स्थित एक अति प्राचीन एवं विशाल बरगद का वृक्ष है जो अनुमानत: तीन-चार एकड़ भूमि क्षेत्र में फैला हुआ है। प्रतिवर्ष चारों तरफ तेजी से पसरती एव फैलती हुई इनकी जडों को अगल-बगल के किसानों द्वारा काट दिया जाता है ताकि बरगद के भावी कब्जे से वे अपने खेतों को बचा सके। मूल तना के अलावे इस वृक्ष की लगभग सौ और भी सहायक तना और जडें हैं जो हाथी-घोड़ों जैसी आकृति बनाते हुए एक प्रकार का भ्रम पैदा करते हैं। खासकर बच्चों के लिए यह एक कौतूहलपूर्ण दृश्य एवं क्रीड़ा स्थल है। ऐसी मान्यता है कि मूल तना के जड़ की खोह में नागदेवी एवं नागदेवता का निवास है प्रतिवर्ष नागपंचमी के दिन यहाँ एक मेले जैसा दृश्य होता है। दूर-दूर के गाँवों से लोग यहाँ नागदेवी एवं नागदेवता की पूजा अर्चना एवं बरगद बाबा के दर्शन करने आते हैं।
 गढ़ी माई का मंदिर : वैसे तो आपने अनेक मंदिर व मस्जिद देखा होगा जहां पूजा व इबादत होती है पर एक जगह ऐसी है जहां एक ओर अल्लाह हो अकबर तो दूसरी ओर गढ़ी माई का जयकारा एक साथ गूंजता है। इसके साथ ही टूट जाती है धर्म-मजहब की दीवार और निकल पड़ती है हम राम और रहीम एक हैं का संदेश। जी हां हिन्दू और मुस्लिम एकता की मिसाल है। शिवहर जिला मुख्यालय वार्ड नं. 14 में अवस्थित गढ़ी माई का मंदिर और मस्जिद। विशाल मस्जिद के मुख्य द्वार पर दाहिने ओर गढ़ी माई का मंदिर है, जहां आस्था व विश्वास का साक्षात दर्शन होता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि सच्चे दिल से मांगी गई मन्नतें अवश्य पूरी होती है। वैसे तो यहां अन्य दिन भी भीड़ लगी रहती है पर दशहरा में विशेष पूजा-अर्चना व बलि की प्रथा है। इस मंदिर-मस्जिद द्वय का इतिहास पुराना है पर जानकारों की मानें तो गढ़ी माई की स्थापना आजादी से पूर्व ही राज दरबारों द्वारा की गई थी, जहां दशहरा व अन्य त्योहारों पर पूजा-अर्चना के साथ बलि दी जाती थी। इसी दौरान कहीं से घूमते फिरते एक फकीर शिवहर पहुंचा व गढ़ी माई के स्थान के निकट ही रहने लगा। वह तंत्र-मंत्र का जानकार था। वह लोगो को झाड़-फूंक करने लगा। कई लोगों को ठीक होने पर उसे ख्याति प्राप्त हो गई। कुछ दिन बीतने के बाद वह फकीर राज दरबार पहुुंच गढ़ी माई के निकट मस्जिद बनाने की इच्छा जताई तो राजा ने फकीर की बातों को स्वीकार करते हुए मस्जिद बनाने में सहयोग किया। मस्जिद बनने के बाद उत्तर-पश्चिम कोने पर मिट्टी से बनी पिण्डी के उपर लाल चुनरी लगाकर पूजा की जाने लगी बाद में कुछ शरारती तत्वों ने उक्त माई की पिण्डी को उखाड़ फेंक दियाए जिसको लेकर काफी बबाल मचा, तत्पश्चात शिवहर व राजा परसौनी की मध्यस्थता व स्थानीय लोगों के सहयोग से पुन: मस्जिद के मुख्य द्वार के समीप पिण्डी स्थापित किया गया। वर्ष 2005 के सितम्बर माह में दोनों समुदाय की सहमति से गढ़ी माई के मंदिर का रूप दिया गया जो आज भी सुशोभित है। लोग पूजा-अर्चना कर धन्य-धान्य हो रहे हैं। ज्ञात हो कि वर्ष 1050 में मस्जिद परिसर में मदरसा इस्लामिया संचालित किया गया जो 1958 में उर्दू बोर्ड के हवाले हो गया। जहां फिलहाल मौलवी व आलिम तक की पढ़ाई होती है। यह मंदिर और मस्जिद आपसी भाईचारा एवं एकता का मिसाल है।
कैसे पहुंचे
वायु मार्ग : यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना स्थित जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। पटना से शिवहर 174 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा गया स्थित गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी है। गया से यह जिला लगभग 244 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग : सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन शिवहर जंक्शन है। रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : भारत के कई प्रमुख शहरों से शिवहर सड़कमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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