Sunday 30 December 2012

मगध का एक छोटा सा हिस्सा जहानाबाद

 प्रसिद पुस्तक 'आईना.ए.अकबरीÓ में जहानाबाद का जिक्र किया गया है। 17 वीं शताब्दी मे औरंगजेब के शासनकाल में यहाँ एक भीषण अकाल पड़ा था। भूख के कारण प्रतिदिन सैकड़ों लोग काल का ग्रास बन रहे थे। ऐसी परिस्थिति मे मुगल बादशाह ने अपनी बहन जहानआरा के नेतृत्व में एक दल अकाल राहत कार्य हेतु भेजा। जहानआरा के स्मृति मे इस स्थान का नाम जहानआराबाद जो कालांतर मे 'जहानाबादÓ  के नाम से हुआ।  प्राचीनकाल के इतिहास की ओर रुख करें तो यह क्षेत्र मगध का एक छोटा सा हिस्सा था। इस जिला के मखदुमपुर प्रखंड में अवस्थित बराबर पहाड़ भौगोलिक, ऐतिहासिक धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से प्राचीन काल से ही अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है।  प्रखंड मुख्यालय से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पर्वत की चोटी के मध्य मे बाबा सिद्धेश्वरनाथ उर्फ  भगवान शंकर का अत्यंत प्राचीन मन्दिर है। मगध सेनापति बाणावर ने अपने प्रवास के दौरान एक विशाल मन्दिर का निर्माण कराया था। जो आज दबा पड़ा है। इसी पर्वत की चोटी पर सम्राट अशोक ने अपनी एक रानी की मांग पर आजीवक सम्प्रदाय के साधुओं के लिए गुफाओं का निर्माण कराया। जो आज भी उसी स्थिति मे विद्धमान है। ये गुफा, विश्व की प्रथम मानव निर्मित गुफाओं के रुप में जानी जाती है। अशोक के पोत्र दशरथ ने भी बोद्ध भिक्षुओं के लिए कुछ गुफाओं का निर्माण कराया गुफाओं के अदर ग्रेनाइट पत्थर चिकनाहट की कला अभूतपूर्व है। पत्थर छूने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो मिस्त्री अभी उठकर बाहर गए हो। ऐसा माना जाता है कि इसी पर्वत पर खुदा तालाब पर ब्राहण विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ कर बुद्ध यहाँ से फल्गु नदी के मार्ग से बोध-गया गए थे। अत: ऐतिहासिक द्रष्टि से इस स्थान का बहुत महत्व है।
 महत्व के स्थान
भेलावर
  जहानाबाद रेलवे स्टेशन से दक्षिण-पूर्व लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर काको प्रखड  मे भेलावर ग्राम अवस्थित है। यह शिव भगवान के पुराने मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। ग्राम के बाहर से ही आज भी मन्दिर के आहाते के पथरीले द्वार के बचे हुए भाग को देखा जा सकता है। हिन्दु ओर मुस्लिम काल की कला के नमूने की खोज भी यहाँ की गई है। यहाँ प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर एक बङा मेला लगता है।
काको
  जहानाबाद रेलवे स्टेशन के लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जहानाबाद बिहार.शरीफ रोड मे अवस्थित काको प्रखड का मुख्यालय है। स्थानीय कथनानुसार श्री रामचन्द्र के सौतेली माँ रानी केकइ कुछ समय यहाँ वास ग्रहण की थी। उन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम काको पङा। एक बहुत बङी मुस्लिम सूफिया हजरत बीबी कमाल साहिबा का मकबरा भी इस ग्राम में है। कहा जाता है कि बिहार-शरीफ  के ह्जरत मखदुम साहब की यह चाची थी और रुहानी ताकत रखती थी। बिहार के कोने-कोने से बङी संख्या मे श्रधालु आते है और मनोकामना पाते है। ग्राम के उत्तर-पश्चिम में एक मन्दिर है, जिसमें सूर्य भगवान की एक बहुत पुरानी मूर्ति स्थापित है। प्रत्येक रविवार को बङी संख्या मे लोग पूजा करने के लिए आते है।
भैख
  यह ग्राम मखदुमपुर प्रखड मुख्यालय से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यहाँ पहाड़ी की चोटी पर सिधेश्वरनाथ से भगवान शिव का ईश्वरीय प्रतीक है। करना चौपार और सुदामा नाम की दो गुफाएँ,  जिनका सम्बन्ध महाराजा अशोक से है। इस पहाङी पर है। कहा जाता है कि महाराजा अशोक ने इसके निकट ही एक झील बनवाई थी, जिसे पटल-गंगा के नाम से पुकारा जाता है। चीनी यात्री हियुनसांग ने इस स्थान का दर्शन किया था और अपनी यात्रा पुस्तक मे इसका उल्लेख भी किया है।
घेजन
  जहानाबाद में दक्षिण-पूर्व लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर कुर्था प्रखन्ड में स्थित एक प्राचीन ग्राम है। यहाँ एक पुराना गढ है जहाँ गुप्त काल की पत्थर की मूर्तियाँ पाई गई है। इन मूर्तियों को पटना के अजायबघर में सुरक्षित रखा गया है।
आमथुआ
  यह जिला मुख्यालय से 7 कि0 मी0 पूर्व में है। मुगल काल में अमूल्य धरोहर जिसमें मुगल कालीन प्रमाण पर बना एवं सरकारी पथ पाए गए थे। जो फिलहाल पटना के खुदाबख्श लाइब्रेरी पुस्तकालय में मौजूद है। गाँव के दक्षिण मे शेरशाह की बनाई मस्जिद भी है। इसके अतिरिक्त यहाँ बहुतेरे महापुरुषों की कब्रें है जिनमें एक शेख चिस्ती की है।
ओकरी
 यह जिला मुख्यालय से 18 कि0 मी0 उतर-पूर्व में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। पूरा गाँव टिलहा पर बसा है। ओकरी परगना इसी गाँव के नाम पर है। इस परगना में फ्रांसिसी बुकानन के काल मे 132000 विगहा जमीन थी। कुछ जगहों पर खुदाई के दरम्यान कई मूर्तियों के साथ ब्राह्यीलिपि अभिलेख वाले 4 स्तम्भ भी प्राप्त हुए है ।
केउर
 जिला मुख्यालय से 30 कि0 मी0 दक्षिण-पूर्व में बसे इस गाँव मे प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरात्त्वविद ए0 बनर्जी ने 1939 ई0 में इस गाँव का निरीक्षण किया था। यहाँ एक बहुत बडा गढ है। जिसकी ऊचाई 40 फीट है। इस गढ की खुदाई के दरम्यान पाल काल के बहुत सारे मूर्तियाँ मिली है जो 10 वीं एवं 12 वीं सदी की है। खुदाई के क्रम में  यहाँ बड़ी-बड़ी ईटें प्राप्त हुई है। जिसकी लं0 14 इंच चौडाई 8 1ध्2 इंच एवं ऊचाई 3 इंच है। इतिहासकार शास्त्री ने इस गाँव की तुलना नालन्दा से करते हुए कहा था लगता है कि यह पाल कालीन बौद्ध विश्वविद्यालय विक्रमशीला यही अवस्थित है।
दाउदपुर
 यह गाँव जिला मुख्यालय से 28  कि0 मी0 पूर्व में स्थित है। इस गाँव का निरिक्षण फ्रासिसी बुकान्न ने 1811-12 ई0 में तथा ब्राडले ने 1872 में किया था। इनलोगों ने अपने प्रतिवेदन मे बताया है कि इस गाँव का पूर्व में नाम देवस्ति, देव्स्थु,  दप्थु, दाउथु था। यहाँ मिट्टी का गढ भी है तथा गढ के दक्षिण-पूर्व में मुस्लिम संत का मजार है। मजार के दक्षिण-पूर्व में एक विशाल मन्दिर पारसनाथ के नाम से ख्याति प्राप्त है जिसे बौद्ध मन्दिर भी माना जाता है। इस मन्दिर के दक्षिण में वासुदेव,  लक्ष्मीनारायण जगदम्बा नृत्य मुद्रा में पार्वती-शिव की मूर्तियाँ है। ये बातें फ्रांसिसी यात्री बुकानन के द्वारा लिखी गयी थी। लेकिन आज की स्थिति में वहाँ सिर्फ अवशेष मिलेगे। वहाँ की कुछ मूर्तियाँ गया संग्रहालय में उपलब्ध है।

लाट
यह जिला मुख्यालय से करीब 35 कि0 मी0 पूर्व-दक्षिण के कोण पर स्थित है। यहाँ एक गोलाकार लम्बा स्तम्भ है जिसकी लम्बाई 53.5 फीट गोलाई 3.5 फीट व्यास की है। यह उतर से दक्षिण की ओर आधी जमीन में तथा आधी जमीन की सतह पर है। हाल में कुछ पुरातत्वविदों ने इस मरहौली लौह स्तम्भ का साँचा बताया है।
जारु
 जिला मुख्यालय से करीब 40 कि0 मी0 पूर्व-दक्षिण के कोण पर है। यहाँ एक प्राचीन मन्दिर का अवशेष मिला है जो स्थात्व कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोग इसे शेरशाह के काल का बताते है। बगल में स्थित पर्वत पर एक बहुत बङा शिवलिंग है। इसे हरिहर नाथ के नाम से जाना जाता है। यहाँ मेला भी लगता है।
धराउत
 जिला मुख्यालय से करीब 22 कि0 मी0 दक्षिण तथा बराबर पहाङी से 05 कि0 मी0 उतर. पूर्व मे स्थित है। यहाँ एक विशाल बौद्ध मठ चीनी यात्री व्हेन-सांग के काल में था। चीनी यात्री व्हेन.सांग ठहरे भी थे। जिसका उल्लेख उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में किया है। इस गाँव के ऐतिहासिक एवं पुरातत्व विभाग को देखते हुए कई पुरातत्वविदो ने विभिन्न समयों में यहाँ का निरीक्षण किया है। जिनमे मेजर किट्टी ने 1847 ई0 कलिंघम ने 1862 ई0 और 1880 ई0 में बेलगार ने 1892 ई0, डा0 गिरियेसेन ने 1900 ई0,  डा0 हरिकिशोर ने 1954 में इसका निरीक्षण किया, इस गाँव का पूर्व में कई नाम थे जिनमे धरमपुर, कंचनपुर, धरमपुरी, धरमावर आदि प्रमुख है। यहाँ की बहुत सारी मुर्तियाँ पटना संग्रहालय मे उपलब्ध है। इस गाँव की विगत बहुत सारी टिल्हे एवं गढ है। यदि जिसकी खुदाई की जाए तो इस गाँव में और भी ऐतिहासिक तथ्य सामने आयेगी।
जहानाबाद बिहार की राजधानी पटना से रेलमार्ग द्वारा 45 कि0 मी0 की दूरी तथा सङक मार्ग से 56 कि0 मी0 दूरी पर जहानाबाद का मुख्यालय है। दरधा नदी एवं यमुना नदी के संगम पर स्थित है। सम्पूर्ण जिले की भूमि समतल मैदानी क्षेत्र है। नदियाँ सोन,  पुनपुन,  फक्गु, दरधा और यमुना इस जिले से होकर गुजरती है। सिर्फ सोन नदी एवं पुनपुन नदी जहानाबाद जिले के पश्चिमी किनारे को छूती हुई गुजरती है एवं सदा बहनेवाली नदी है। मौसमी नदियाँ दरधा,  यमुना, ऑर फल्गु कभी-कभी भयानक रुप धारण कर लेती है। फल्गु नदी को हिन्दु समुदाय आदर की नजर से देखते है और इसके किनारे पर अपने पूर्वजों को पिंड दान का धार्मिक कार्य करते है।

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