Saturday 29 December 2012

हवाओं में मालभोग केले की खुश्बू हाजीपुर शहरिया

मालभोग, चीनिया और अलपान केले तथा आम की मालदह, सीपिया, कृष्णभोग, लड़ुई मिठुआ, दसहरी किस्मों के लिए हाजीपुर की अच्छी ख्याति है किसी और की नहीं हाजीपुर शहरिया का है। यहां के हवाओं में मालभोग केले की खुश्बू बिखरी हुई।
गंगा और गंडक नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। हिंदू पुराणों में गज (हाथी) और ग्राह (मगर) की लड़ाई में प्रभु विष्णु के स्वयं यहां आकर गज को बचाने और ग्राह को शापमुक्त करने का वर्णन है। कोनहारा घाट के पास कार्तिक पूर्णिमा को यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है। ईसा पूर्व छठी सदी के उत्तरी और मध्य भारत में विकसित हुए 16 महाजनपदों में वैशाली का स्थान अति महत्वपूर्ण था। नेपाल की तराई से गंगा के बीच फैली भूमि पर वज्जिसंघ द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत की गई थी। वज्जिकुल में जन्मे भगवान महावीर की जन्म स्थली शहर से 35 किलोमीटर दूर कुंडलपुर (वैशाली) में है। महात्मा बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ था। भगवान बुद्ध के सबसे प्रिय शिष्य आनंद की पवित्र अस्थियां इस शहर (पुराना नाम. उच्चकला) में जमींदोज है।
हर्षवर्धन के शासन के बाद यहाँ कुछ समय तक स्थानीय क्षत्रपों का शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ। तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी मे चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। तुर्क.अफगान काल में 1211 से 1226 बीच गयासुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। 1323 में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक का राज आया। इसी दौरान बंगाल के एक शासक हाजी इलियास शाह ने 1345 ई से 1358 ई तक यहाँ शासन किया। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोधी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया।
बाबर ने अपने बंगाल अभियान के दौरान गंडक तट पर एक किला होने का जिक्र श्बाबरनामाश् में किया है। 1572 ई. से 1542 ई. के दौरान बंगाल विद्रोह को कुचलने के क्रम में अकबर की सेना ने दो बार हाजीपुर किले पर घेरा डाला था। 18 वीं सदी के दौरान अफगानों द्वारा शहर पर कब्जा किया गया। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय हाजीपुर के शहीदों की अग्रणी भूमिका रही है।

दर्शनीय स्थल
महात्मा गाँधी सेतु

5 किलोमीटर 575 मीटर लंबी प्रबलित कंक्रीट से गंगा नदी पर बना महात्मा गाँधी सेतु 1982 में बनकर तैयार हुआ और भारत की तत्कालिन प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था। लगभग 121 मीटर लंबे स्पैन का प्रत्येक पाया बॉक्स.गर्डर किस्म का प्रीटेंशन संरचना है जो देखने में अद्भुत है। 46 पाये वाले इस पुल से गंगा को पार करने पर केले की खेती का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। इस पुल से पटना महानगर के विभिन्न घाटों तथा लैंडमार्क का अवलोकन किया जा सकता है। महात्मा गांधी सेतु, हाजीपुर-विश्व का सबसे लंबा पुल ;5ए575 मीण्द्ध हाजीपुर को पटना से जोड़ता हुआ गंगा नदी पर बना है।महात्मा गांधी सेतु, हाजीपुर . विश्व का सबसे लंबा पुल ;5ए575 मीण्द्ध
हाजीपुर को पटना से जोड़ता हुआ गंगा नदी पर बना है।

कोनहारा घाट

गंगा और गंडक के पवित्र संगम स्थल की महिमा भागवत पुराण में वर्णित है। गज.ग्राह की लडाई में स्वयं श्रीहरि विष्णु ने यहाँ आकर अपने भक्त गजराज को जीवनदान और शापग्रस्त ग्राह को मुक्ति दी थी। इस संग्राम में कौन हाराघ्.ऐसी चर्चा सुनते सुनाते इस स्थान का नाम श्कोनहाराश् पड़ गया। बनारस के प्रसिद्ध मनिकर्णिका घाट की तरह यहाँ भी श्मशान की अग्नि हमेशा प्रज्वलित रह्ती है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर शरीर की अंत्येष्टि क्रिया मोक्षप्रदायनी है।
नेपाली छावनी मंदिर
मातबर सिंह थापा द्वारा हाजीपुर में निर्मित शिव मंदिर

एक नेपाली सेनाधिकारी मातबर सिंह थापा द्वारा 18 वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित शिवमंदिर कोनहारा घाट के समीप है। यह अद्वितीय मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। काष्ट फलकों पर बने प्रणय दृश्य का अधिकांश भाग अब नष्टप्राय है या चोरी हो गया है। कला प्रेमियों के अलावे शिव भक्तों के बीच इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है। काष्ठ पर उत्कीर्ण मिथुन के भित्ति चित्र के लिए यह विश्व का इकलौता पुरातात्विक धरोहर है। दुर्भाग्यवशए देखरेख एवं रखरखाव के अभाव में अद्भुत कलाकृतियों को दीमक अपना ग्रास बना रहा है।
रामचौरा मंदिर
नगर के दक्षिणी भाग में स्तूपनुमा अवशेष पर बना रामचौड़ा मंदिर हिंदू आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है। ?सी मान्यता है कि अयोध्या से जनकपुर जाने के क्रम में भगवान श्रीराम ने यहाँ विश्राम किया था। उनके चरण चिö प्रतीक रुप में यहाँ मौजूद है। पुरातत्वविदों का मानना है कि बुद्धप्रिय आनंद की अस्थि को रखे गए स्तूप के अवशेष स्थल पर ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था।
पतालेश्वर स्थान
नगर के रक्षक भगवान शिव पतालेश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं। पतालेश्वर स्थान नाम से मशहूर स्थानीय हिंदुओं का सबसे महत्वपूर्ण पूजास्थल शहर के दक्षिण में रामच?रा के पास रामभद्र में स्थित है। 1895 में धरती से शिवलिंग मिलने के बाद यहां मन्दिर निर्माण हुआ। भीड भडे माह?ल से दूर बने इस शिव मन्दिर का स्थापत्य साधारण लेकिन आकर्षक है। लगभग 22800 वर्गफ़ीट में बने इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप 1932.34 के बीच अस्तित्व में आया। मन्दिर परिसर में बने विवाह मंडप में सालोंभर विवाह.संस्कार संपन्न कराये जाते हैं जिसकी आधिकारिक मान्यता भी है।
अकबर काल में बनी हाजी मस्जिद
शेख हाजी इलियास द्वारा निर्मित किले के अवशेष क्षेत्र के भीतर बनी जामी मस्जिदए हाजीपुर में मुगलकाल की महत्वपूर्ण इमारत है। शहजादपुर अन्दरकिला में जी? ए? इंटर स्कूल के पास पत्थर की बनी तीन गुंबदों वाली यह आकर्षक मस्जिद आकार में 25ऽ8 मीटर लंबी और 10ऽ2 मीटर चौड़ी है। मस्जिद के प्रवेश पर लगे प्रस्तर में इसे अकबर काल में मख्सूस शाह एवं सईद शाह द्वारा 1587 ई? ;1005 हिजरीद्ध में निर्मित बताया गया है। मस्जिद के पास जिलाधिकारी आवास के निकट हाजी इलियास तथा हाजी हरमेन की मजार बनी है।
मामू.भाँजा की मजाऱ
मुगलशासक औरंगजेब के मामा शाईस्ता खान ने हजऱत मोहीनुद्दीन उर्फ दमारिया साहेब और कमालुद्दीन साहेब की मजाऱ हाजीपुर से 5 किलोमीटर पूरब मीनापुरए जढुआ में बनवायी थी। सूफी संतो की यह मजार स्थानीय लोगों में मामू.भगिना या मामा.भाँजा की मजाऱ के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं बाबा फरीद के शिष्य ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के मजार की अनुकृति भी बनी है। सालाना उर्स के मौके पर इलाके के मुसलमानों का यहाँ भाड़ी जमावड़ा होता है। इसके पास ही मुगल शासक शाह आलम ने लगभग 180 वर्ष पूर्व करबला का निर्माण कराया था जो मुसलमानों के लिए पवित्र स्थल है।
गाँधी आश्रम
हाजीपुर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित गाँधी आश्रम महात्मा गाँधी के तीन बार हाजीपुर पधारने के दौरान उनसे जुड़ी स्मृतियों का स्थल है। एक पुस्तकालय के अतिरिक्त गाँधीजी के चरखा प्रेम और खादी जीवन को बढावा देने हेतु ख्खादी और ग्रामोद्योग आयोग, द्वारा संचालित परिसर है। स्थानीय विक्रय केंद्र पर खादी वस्त्र, मधु, कच्ची घानी सरसों तेल आदि उपलब्ध है। हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र में खादी और ग्रामोद्योग का केन्द्रीय पूनी संयंत्र भी है जहाँ खादी वस्त्र तैयार किए जाते हैं।
हरिहरक्षेत्र मेला
गज.ग्राह घटना की याद में कोनहारा घाट के सामने सोनपुर में हरिहरक्षेत्र मेला लगता है। स्थानीय लोगों में श्छत्तर मेलाश् के नाम से मशहूर है। प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र गंडक.स्नान से शुरु होनेवाले मेले का आयोजन पक्ष भर चलता है। सोनपुर मेला की प्रसिद्धि एशिया के सबसे बड़े पशु मेले के रुप में है। हाथी.घोड़े से लेकर रंग.बिरंगे पक्षी तक मेले में खरीदे.बेचे जाते हैं। आनेवाले जाड़े के लिए गर्म कंबल से लेकर लकड़ी के फर्नीचर तक स्थानीय लोगों की जरुरतों को पुरा करती हैं। तमाशेए लोकनृत्य] लोककलाएँ और प्रदर्शनियाँ देशी.विदेशी पर्यटकों की कौतूहल को शांत करती हैं।

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