Sunday 23 December 2012

जन्नत बुंदेलखण्ड का विशाल जंगल


मध्य प्रदेश में भेडिय़ों और काले हिरणों के लिए सबसे बड़े कुदरती आवास के रुप में प्रसिद्ध 'नौरादेेही अभयारणÓ अब किस्म-किस्म के देशी तथा विदेशी परिंदों के जन्नत के रुप में नई पहचान बनता जा रहा है। संभावना है कि आने वाले समय में बुंदेलखण्ड भी परिंदों का दीदार करने वाले तथा उनके दीवाने सैलानियों का पसंदीदा पड़ाव बन जाए।  बुंदेलखण्ड अंचल के जंगलों के अधिकारियों का मानना है कि प्रदेश के इस सबसे बड़े अभयारण में हिरण, चीतल, जंगली भैसा, मगरमच्छ, बंदर, चौसिंघा तथा अन्य जंगली जानवरों के अलावा रंग-बिरंगे देशी और विदेशी परिदों के पसंदीदा आशियाना बननेे से परिंदों के दीवानों के यहां आने की संभावना बढती जा रही है।  बुंदेलखण्ड के तीन जिलों, सागर, नरसिंहपुर तथा दमोह के 1197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला नौरादेही अभयारण सैलानियों को लुभाने वाला यह क्षेत्र हालांकि अब तक देश के पर्यटन के नक्शे पर कोई खास पहचान नहीं बना पाया है लेकिन 'देर आयद दुरुस्त आयदÓ की तर्ज पर ही सही जंगल महकमें ने इस वर्ष एक अक्टूबर से शुरु हुए वन्य प्राणी सप्ताह के दौरान आम जनता को जंगलों की कुदरती खूबसूरती से रुबरु कराने के लिए Óजंगल करवाÓ नाम से नियमित पर्यटन बस सेवा शुरु की है।  सागर वन क्षेत्र के मुख्य वन संरक्षक अजीत श्रीवास्तव की माने तो नोरादेही अभयारण में सैलानियों को भले ही बाघ के दर्शन न हो पाएं लेकिन अभयारण का छेवला तालाब, मूलराघाट, बरगयाव तालाब, तेंदूघाट व रगेडा घाट पर उन्हें देश विदेश के एक से बढ़कर एक दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों की अठखेलियां तथा कलरव के दिलकश नजारे देखने को मिल सकते हैं। उत्तराखंड के देहरादून स्थित वन्यजीव संस्थान भी नौरादेही मे 100 से ज्यादा प्रजाति के पक्षियों मौजूदगी की पुष्टि कर चुका है।  इसके अलावा जंगल की कुदरती खूबसूरती, झरने, नदी हरियाली के साथ साथ हिरण, चौसिंघा, मगरमच्छ व नीलगाय जैसे जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में रहने तथा विचरण करते देखना भी किसी रोमांच से कम नहीं होता।  नौरादेही अभयारण के वनमण्डल अधिकारी जे. देव प्रसाद ने बताया कि अभयारण में करीब 150 किस्म के परिंदो को देखा जा सकता है। इतना ही नहीं इनमें से 125 किस्म के परिदों का सचित्र सिलसिलेवार ब्योरा भी एकत्रित किया जा सकता है। विदेशी परिंदे खास तौर पर शीत ऋृतु में यहां भ्रमण करने आते हैं।  देव प्रसाद के मुताबिक छेवला तालाब अभयारण का एक ऐसा स्थल बनता जा रहा है जहां करीब करीब सभी प्रजातियों के पक्षियों को एक साथ अठखेलियां करने और चहचहाने के नजारे देखे जा सकते हैं। इस तालाब पर सैर करने के लिए आने वाले परिंदो में से करीब दो दर्जन दुर्लभ प्रजाति के है। इन परिंदों में सुलतान बुलबुल (एशियन पैराडाईज फ्लाईकैचर), गंगुला (एशियन ओपनबिल), सुरमाल (ब्लैक स्टाक), छोटा कठफोडवा (इजिप्शियन वल्चर), छोटा गरुड़ (लेसर एड्जुटेण्ट), छोटी पंडुब्बी (लिटिल ग्रेब), सुराखिया (लिटिल इरिगिट), दूधराज, टिटहरी, पहाड़ी भुजंग, कटसरंग व रामचिरैया (किंगफिशर) सहित अन्य परिंदें शामिल हैं।  प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन सारस (क्रेन), छोटी मुगावी (कामन टील), सीखपर (नार्दन पिनटेल), मायले (गडवेल), सहित अन्य के नाम शामिल हैं।  नोरादेही अभयारण में आने वाले परिंदों के व्यवहार का अध्ययन कर रहे आर के तिवारी के मुताबिक दूसरे देशों से आनेवाले अनेक पक्षियो्रं के समूह में से कुछ सदस्य तो ऐसे है जो एक बार नौरादेही अभयारण आने के बाद जाड़ा खत्म होने पर भी वापस वतन को नहीं लौटे। इससे ऐसा लगता है उनको यहां की आबोहवा इतनी रास आई कि नौरादेही अभयारण को ही उन्होने अपना स्थाई बसेरा बना लिया है।  बहरहाल इतना तो कहा ही जा सकता है कि अगर देश विदेश के परिंदों की पसंदीदा आशियाने की तलाश बुंदेलखण्ड के जंगलों में पूरी हो रही है तो नए नए खूबसूरत परिंदो के देखने के शौकीन सैलानियों तथा अध्एताओं की यात्रा में बुंदेलखण्ड भी एक अहम पडाव बनेगा।  वन प्रेमियों का कहना है कि जंगल विभाग इस स्थान को ऐसा बना दे जो परिंदो को न केवल भोजन तथा प्रजनन के लिहाज से मुफीद लगे बल्कि उनके लिए सुरक्षित भी साबित हो सके।

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