Tuesday 1 January 2013

हिंदू और बौद्ध देवी देवताओं के लिए प्रसिद्ध लखीसराय

 लखीसराय बिहार के महत्वपूर्ण शहरों में एक है। इस जिले का गठन 3 जुलाई 1994 को किया गया था। इससे पहले यह मुंगेर जिला के अंतर्गत आता था। इतिहासकार इस शहर के अस्तित्व के संबंध में कहते हैं कि यह पाल वंश के समय अस्तित्व में आया था। यह दलील मुख्य रूप से यहां के धार्मिक स्थलों को साक्ष्य मानकर दिया जाता है। चूंकि उस समय के हिंदू राजा मंदिर बनवाने के शौकीन हुआ करते थे, अत: उन्होंने इस क्षेत्र में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। इन मंदिरों में कुछ महत्वपूर्ण तीर्थस्थान इस प्रकार हैं। अशोकधाम, भगवती स्थान, बड़ैहया, श्रृंगऋषि, जलप्पा स्थान, अभयनाथ स्थान, अभयपुर, गोबिंद बाबा स्थान, मानो-रामपुर, दुर्गा स्थान, लखीसराय आदि। इसके अलावा महारानी स्थान, दुर्गा मंदिर देखने लायक हैं।
लखीसराय की स्थापना पाल वंश के दौरान एक धार्मिक-प्रशासनिक केंद्र के रूप में की गई थी। यह क्षेत्र हिंदू और बौद्ध देवी देवताओं के लिए प्रसिद्ध है। बौद्ध साहित्य में इस स्थान को अंगुत्री के नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ है जिला। प्राचीन काल में यह अंग प्रदेश का सीमांत क्षेत्र था। पाल वंश के समय में यह स्थान कुछ समय के लिए राजधानी भी रह चुका है। इस स्थान पर धर्मपाल से संबंधित साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। जिले के बालगुदर क्षेत्र में मदन पाल का स्मारक  भी पाया गया है। ह्वेनसांग ने इस जगह पर 10 बौद्ध मठ होने के संबंध में विस्तार से बताया है। उनके अनुसार यहां मुख्य रूप से हीनयान संप्रदाय के बौद्ध मतावलंबी आते थे। इतिहास के अनुसार 11वीं सदी में मोहम्मद बिन बख्तियार ने यहां आक्रमण किया था। शेरशाह ने 15वीं सदी में यहां शासन किया था जबकि यहां स्थित सूर्यगढ़ा शेरशाह और मुगल सम्राट हुमायूं के युद्ध का साक्षी है।

पर्यटन स्थल
अशोकधाम

हिंदू तीर्थयात्रियों के पवित्र स्थानों में से एक है अशोकधाम। यहां पाया गया शिवलिंग काफी बड़ा है। यहां खासकर महाशिवरात्रि और सावन के महीने में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है। इस स्थान पर कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान भी होते रहते हैं। इनमें से मुंडन बहुत लोकप्रिय है। यहां जाने के लिए लखीसराय रेलवे स्टेशन से मोटर वाहन या तांगा से जाया जा सकता है। अशोक धाम एक परच्हैं मन्दिर इस बहुत पुरानि काहानि है लखिसराय मे एक चारबाहा जिस्क नाम अशोक था वो नित दिन गाय चाराने गाया करता था कि वो देख कि एक बहुत बरि शिवे लिङ धरति के अन्दर परा है तो वो उस शिवलिग को कबर्न लगा पर वो तस से मस नहि हुआ तो वो वोहि एक मन्दिर क निर्मान कर दिय तब से वो मन्दिर का नाम अशोक धाम र्प गया
जलप्पा स्थान
यह स्थान आसपास के क्षेत्रों के अलावा दूर-दराज के इलाकों में भी काफी प्रसिद्ध है। यह धार्मिक स्थान पहाडिय़ों पर स्थित है। जलप्पा स्थान मुख्य रूप से गौ पुजा के लिए जाना जाता है। यहां खासकर हर मंगलवार को श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है। यहां जाने के लिए लखीसराय से चानन क्षेत्र होते हुए जीप, टैक्सी अथवा तांगे से जया जा सकता है। पैदल तीर्थयात्री मानो गांव होते हुए लगभग दो घंटे पैदल चलने के बाद जलप्पा स्थान पहुंचा जा सकता है। साल के प्रारंभ में यहां भारी संख्या में सैलानी आते हैं।
गोबिंद बाबा स्थान
गोबिंद बाबा का स्थान इस पूरे क्षेत्र में पूजनीय है। यह मंदिर मानो-रामपुर गांव में स्थित है। धार्मिक रूप से इस स्थान का काफी महत्व है। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यहां का पूजा है जिसको ढ़ाक के नाम से जाना जाता है।
श्रृंग ऋषि
खडग़पुर की पहाडिय़ों पर स्थित यह तीर्थस्थल लखीसराय का श्रृंगार है। यह स्थान जिले के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसका नाम प्रसिद्ध ऋषि श्रृंग के नाम पर रखा गया है। यहां शिवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है। यहां आनेवाले पर्यटकों के लिए झरना आकर्षण के केंद्र बिदू में रहता है।
पोखरामा
यह एक दर्शनीय स्थान है, यहाँ बहुत सारे मंदिर और तालाब है। दु:खभंजन स्थान, काली स्थान, ठाकुरबाड़ी, क्षेमतरणी, सूर्यमंदिर और साधबाबा इस पूर क्षेत्र में पूजनीय है। यहां छठ के अवसर पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है।
सूर्यगढ़ा
लखीसराय जिलान्तर्गत, सूर्यगढ़ा प्रखंड के उरैन में पहाड़ पर उकेरी गई महात्मा बुद्ध के रेखाचित्रों के साथ इसी उरैन में  मृदभाड़ प्राप्त हुआ है, इसके संबंध में बताया जाता है कि यह 7वीं से 8वीं शताब्दी का है, जिसकी ऊॅचाई 41/2 फीट, परिधि 10 फीट तथा गला 5 फीट है । उरैन के संबंध में अनेकानेक इतिहासकार, विद्वान, पुरातत्ववेता ने अपने शोध एवं यात्रा वृतांत में अंकित किया है, जिनमें मुख्य रूप से विश्व प्रसिद्ध यात्री ह्ननेसांग एवं वैडेल जैसे महान विद्वान उल्लेखनीय हैं। वर्ष 1950 में इतिहासकार प्रो0 श्री डी0सी0 सरकार ने स्वयं उरैन, आकर इसकी चर्चा किया था, किन्तु यह मृदभाड़ विलुप्त हो गया था। इसकी विलुप्तता के संबंध में प्रो0 राम रघुवीर, डी0 जे0 कॉलेज, मुंगेर ने भी अपनी पुस्तक 'मुंगेर का ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक भूगोलÓ में भी उल्लेख किया है। उल्लेखनीय है कि उरैन सातवीं से बारहवीं शताब्दी तक एक प्रमुख बौध तीर्थ स्थल था। बताया जाता है कि इस स्थल का कभी उत्खनन नहीं किया गया है।
आवागमन
हवाई मार्ग

हालांकि यह शहर हवाई मार्ग से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा हुआ है लेकिन राजधानी पटना तक हवाई मार्ग की सुविधा है। जहां से रेल या सड़क मार्ग से लखीसराय पहुंचा जा सकता है। पटना लखीसराय से 142 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग
लखीसराय स्टेशन दिल्ली-हावड़ा मुख्य लाईन पर है। इसलिए यह शहर दिल्ली से सीधे जुड़ा हुआ है। किउल जंक्शन पास में होने के कारण यह स्थान बिहार के अन्य क्षेत्रों से भी प्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
यह जिला राष्ट्रीय राजमार्ग 80 पर स्थित है जो राजधानी पटना से जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए निजी या सार्वजनिक वाहनों का उपयोग किया जा सकता है।

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