Thursday 27 December 2012

बिहार भ्रमण-1 : मंडन मिश्र की भूमि सहरसा

                   सहरसा : जिसका उल्लेख शिव पुराण में भी मिलता है


सहरसा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला एवं शहर है। जिला के रूप में सहरसा की स्थापना 1 अप्रैल 1954 को हुआ जबकि 2 अक्टुबर 1972 से यह कोशी प्रमण्डल का मुख्यालय है । नेपाल से आने वाली कोशी नदी के मैदानों में फ़ैला हुआ कोशी प्रमण्डल इतिहास के पन्नों में तो एक समृद्ध प्रदेश माना जाता रहा है किन्तु वर्तमान में यह अति पिछड़े क्षेत्रों में आता है । यहाँ कन्दाहा में सूर्य मंदिर एवं प्रसिद्ध माँ तारा स्थान महिषी ग्राम में स्थित है । प्राचीन काल से यह स्थान आदि शंकराचार्य तथा यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ के लिए भी विख्यात रहा है। आरंभ में सहरसा क्षेत्र अंगुत्तरप कहलाता था और उत्तर बिहार प्रसिद्ध वैशाली महाजनपद के सीमा पर स्थित था। अंग देश के शक्तिशाली होने पर यह इसके रहा लेकिन जल्द ही मगध साम्राज्य के विस्तारवाद का शिकार हो गया। बनमनखी.फारबिसगंज रोड पर सिकलीगढ में एवं किशनगंज पुलिस स्टेशन के पास मौर्य स्तंभ मिलने से यह बात प्रमाणित है। 1956 में प्रसिद्ध इतिहासकार आर के चौधुरी के निर्देशन में हो रहे खुदाई के दौरान गोढोघाट एवं पटौहा में आहत सिक्के मिले हैं। मगध साम्राज्य में बिम्बिसार के समय बौद्ध धर्म के राजधर्म बनने पर यहाँ भी बौद्ध प्रभाव बढने लगा। जिले का बिराटपुर, बुधियागढी, बुधनाघाट, पितहाही और मठाई जैसी जगहों पर बौद्ध चिह्न मिले हैं। 7वीं सदी में जब आदि शंकराचार्य भारत भ्रमण पर निकलकर शास्त्रार्थ द्वारा हिंदू धर्म की पुनस्र्थापना करने लगे तब उनका आगमन सहरसा जिले के महिषीग्राम में हुआ। कहा जाता है जब आदि शंकराचार्य ने यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र को हरा दिया तब उनकी पत्नीए जो कि एक विदुषी थीं, ने उन्हे चुनौती दी तथा शंकराचार्य को पराजित कर दिया।
कोशी नदी के तट पर बसा सहरसा बिहार का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है। तारा स्थान, चंडी स्थान, मंडन भारती स्थान, सूर्य मंदिर, लक्ष्मीनाथ गोसाईं स्थल, कारु खिरहारी मंदिर तथा मत्स्यगंधा यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। यह एक प्राचीन स्थल है। जिसका उल्लेख शिव पुराण में भी मिलता है। पालों के शासनकाल में यह प्रशासनिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता था।
दर्शनीय स्थल
मंडन भारती स्थान : यह स्थान महर्षि गांव में स्थित है। कहा जाता है कि इसी जगह पर जगतगुरु शंकराचार्य और यहां के स्थानीय निवासी मंडन मिश्र के बीच प्रसिद्ध शास्त्रार्थ हुआ था। इस शास्त्रार्थ में मंडन मिश्र की पत्नी भारती न्यायधीश थीं। भारती एक विदूषी महिला थीं। इस शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को परास्त कर दिया था। मंडन मिश्र के हारने के बाद भारती ने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया और शंकराचार्य को इस शास्त्रार्थ में हरा दिया।   महिषी की भूमि सदियों से सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत के लिये प्रसिद्ध रही है।  एक किंवदंती यह भी है कि आठवीं-नौवीं सदी में जगतगुरु शंकराचार्य अद्वैतवेदांत पर मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ के लिए महिषी आए थे। इस शास्त्रार्थ को लेकर दो लोक-कथाएं प्रचलित हैं। एक तो यह कि इस शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को जब पराजित कर दिया तो उनकी पत्नी भारती ने शंकराचार्य शास्त्रार्थ की चुनौती दी और पराजित किया। दूसरी यह कि अद्वैत वेदांत पर शास्त्रार्थ के लिए शंकराचार्य के महिषी पहुंचते ही भारती ने पहले उनसे ही शास्त्रार्थ कर लेने की चुनौती दी और पराजित किया।
तारा स्थान : यह स्थान सहरसा से 16 किलोमीटर दूर पश्चिम में महर्षि गांव में स्थित है। यहां भगवती तारा एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर में भगवती तारा की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि यह बहुत प्राचीन है। भक्तों को इस मूर्ति के नजदीक जाने नहीं दिया जाता है। भक्त दूर से ही इस मूर्ति के दर्शन कर सकते हैं। भगवती तारा की मूर्ति के दूसरी ओर दो अन्य देवियों की छोटी मूर्तियां स्थापित है। स्थानीय लोग इन मूर्तियों की एकजाता और सरस्वती के रूप में पूजा करते हैं।
चंडी स्थान : सहरसा जिले के सोनबरसा प्रखंड में स्थित विराटपुर गांव देवी चंडी के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस गांव का संबंध महाभारत काल के प्रसिद्ध राजा विराट से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के 12 वर्ष इसी गांव में व्यतीत किया थे। यह मंदिर तांत्रिक संप्रदाय से संबंधित है। महर्षि गांव में स्थित तारा मंदिर तथा धमहारा घाट पर स्थित कात्यायनी मंदिर एवं सोनबरसा में स्थित चंडी मंदिर को मिला कर तांत्रिक संप्रदाय का यहां एक प्रसिद्ध त्रिकोण बनता है। नवरात्रों के समय दूर-दूर से लोग देवी की पूजा करने यहां आते हैं। 
सूर्य मंदिर : औरंगाबाद स्थित सूर्य मंदिर की तरह सहरसा के खंडाहा गांव में भी प्रसिद्ध सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर में सूर्य देवता की मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति में सूर्य देवता को सात घोड़ों वाले रथ पर सवार दिखाया गया है। यह मूर्ति ग्रेनाइट के एक ही चट्टान से बनी हुई है। इतिहासकारों का मानना है कि यह मूर्ति कर्नाट साम्राज्य के शासक नरसिंहदेव के काल की है। ज्ञातव्य है कि नरसिंहदेव ने 12वीं शताब्दी में मिथिला क्षेत्र में शासन किया था। इस मंदिर को मुगल आक्रमणकारियों ने क्षति पहुंचाई। बाद में प्रसिद्ध संत और कवि लक्ष्मीनाथ गोसाईं ने मिलकर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
लक्ष्मीनाथ गोसाईं स्थल : संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं का यह प्रसिद्ध स्थल जिला मुख्यालय से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वनगांव में स्थित है। यहां बरगद के एक विशाल वृक्ष के नीचे संत से संबंधित अवशेषों को सुरक्षित रखा गया है। यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। 
दीवान बन मंदिर : यह मंदिर शाहपुर-मंझौल में स्थित है। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। कहा जाता है कि इस लिंग की स्थापना महाराजा शालिवान ने 100 ई. पू. में की थी। महाराजा शालिवान की कोई संतान नहीं थी। काफी समय के बाद उन्हें एक पुत्र हुआ और उसका नाम जीमूतवाहन रखा गया। जीमूतवाहन के नाम पर हिन्दूओं का प्रसिद्ध त्योहार जितिया मनाया जाता है। इस स्थान का जिक्र शिव पुराण में भी मिलता है। दीवान बन का प्राचीन मंदिर कोशी नदी में बह गया। स्थानीय लोगों ने उसी स्थान नया दीवान बन मंदिर का पुर्ननिर्माण करवाया।
नौहटा :यह एक प्राचीन गांव है। इस गांव का अस्तित्व मुगलों के समय से ही है। वर्तमान में यह जिला मुख्यालय है। इस गांव में एक 80 फीट ऊंची शिव मंदिर है। यह मंदिर 1934 में आए भूकंप में क्षतिग्रस्त हो गया था। बाद में श्रीनगर राज्य के राजा श्रीनद ने इस मंदिर का पुर्ननिर्माण करवाया। यहां माधो सिंह की समाधि भी है। यह समाधि जमीन से 50 फीट ऊंची है। माधो सिंह की लडरी घाट की लड़ाई में मृत्यु हो गई थी।
उदही : यह गांव खारा प्रखंड में है। यहां देवी दुर्गा की एक प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा खुदाई के दौरान मिली थी। कहा जाता है कि सोने लाल झा को सपने में देवी ने किसी खास स्थान पर खुदाई करने का आदेश दिया। उस स्थान पर खुदाई करने पर ही देवी की यह प्रतिमा मिली थी। बाद में उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया। दूर-दूर से लोग देवी के दर्शन करने यहां आते हैं। प्रत्येक वर्ष महाअष्टमी को यहां एक मेले का आयोजन किया जाता हैं।
कारु खिरहारी मंदिर : संत कारु खिरहारी का यह मंदिर कोशी नदी के तट पर स्थित है। संत कारु शिवभक्त थे। यहां आने वाले भक्त यहां चढ़ावे के रुप में दूध चढ़ाते हैं। हाल ही में बिहार सरकार ने इस मंदिर को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने की घोषणा की है।
मत्स्यगंधा मंदिर (रक्त काली मंदिर तथा 64 योगिनी मंदिर) : सहरसा शहर में स्थित यह क्षेत्र पहले बंजर था। अब इस स्थान को एक पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया गया है। इस स्थल को सामूहिक रुप से मत्स्यगंधा परियोजना के नाम से जाना जाता है। यहां रक्त काली मंदिर है। यह मंदिर अण्डाकार है। इस मंदिर के अंदरुनी दीवारों पर 64 देवियों की मूर्तियां उत्कीर्ण है। इस मंदिर को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं। बिहार सरकार ने यहां एक खूबसूरत टूरिस्ट कॉम्पलेक्स का निर्माण करवाया है।

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