Sunday 30 December 2012

प्राचीन जिलों में से एक है बांका

बिहार के प्राचीन जिलों में से एक है बांका। इसका जिला मुख्यालय बांका शहर है। यह जिला विशेष रूप में मकर सक्रांति के अवसर पर चौदह दिनों तक चलने वाले मेले के लिए जाना जाता है। यह मेला मन्दार पर्वत पर लगता है। इसके अतिरिक्त, पापहरणी कुंड, लक्ष्यद्वीप मंदिर, रुपस, अमरपुर, असौटा, ज्येष्ठ गौर मठ और श्रावण मेला आदि यहां के दर्शनीय स्थलों में से हैं।  भारत को स्वतंत्रता दिलाने में भी इस जगह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बांका जिला बिहार राज्य के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित है। यह जिला झारखंड राज्य के गोण्डा जिला के पूर्व और दक्षिण सीमा, जुमई के पश्चिम, मुंगेर जिले के उत्तर-पूर्व और भागलपुर के उत्तरी सीमा से लगा हुआ है। अगर आप घूमने का प्लान बना रहे हैं तो बांका जिला में घूमने के अनेकों स्पॉट हैं,जहां आप आकर बेहतर महशूस करेंगे।

कहां जाएं                                                      

पापहरणी कुंड

 इस प्राचीन कुंड को पापहरणी के नाम से जाना जाता है। इस कुंड तक पहुंचने के लिए पर्वत में तीन रास्ते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार कर्नाटक के राजा यहां पर आए थे और मकर सक्रांति में दिन उन्होंने इस कुंड में स्नान किया था। कुंड में स्नान करने से उनके सभी रोग दूर हो गए थे। कुछ लोगों का मानना था कि उन्हें कोढ़ रोग था। इस पर्वत पर भगवान मधुसूदन का मंदिर भी है। काफी संख्या में लोग प्रतिदिन उनके दर्शनों के लिए यहां आते हैँ। एक अन्य कथा के अनुसार, एक भगवान बुंसी के रास्ते से जा रहे थे तो काल पहर के बाद इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। माना जाता है कि शायद ऐसा कुछ मुसलमानों ने किया था। इस कारण भगवान मधुसूदन को बुंसी से प्रत्येक वर्ष हाथी पर बैठाकर लाया जाता है और फिर उनकी पूजा कर उन्हें वापिस उनके स्थान पर छोड़ दिया जाता है।
मंदिर के रास्ते में अन्य कई और मंदिर भी है। पापहरणी कुंड के मध्य में महाविष्णु, महालक्ष्मी जैसे खूबसूरत मंदिरों का निर्माण किया गया है। वर्तमान समय में कुछ मंदिर नष्ट हो चुके हैं। इसके अलावा, यहां दो जैन मंदिर भी है। काफी संख्या में जैन धर्म के लोग भगवान बसुपूज्य की आराधना के लिए यहां आते हैं। माना जाता है कि यह स्थान बसुपूज्य की निर्वाण भूमि है। इस पर्वत पर कई अन्य कुंड जैसे आकाश गंगा और सनख कुंड भी है। सबसे अधिक प्रसिद्ध सीता कुंड है। माना जाता है कि देवी सीता ने इस कुंड में स्नान किया था, जिसके पश्चात् इस कुंड को सीता कुंड के नाम से जाना जाता है।
लक्ष्यद्वीप मंदिर
 यह मंदिर अब नष्ट हो चुका है। लेकिन आज भी पर्वत पर इस मंदिर के कुछ अवशेष देखे जा सकते हैं। पूर्व समय में इस मंदिर को एक लाख द्वीपों से जगमगाया गया था। इसके लिए हर घर से एक मोमबत्ती लाई गयी थी। प्राचीन समय में इस क्षेत्र को बलिशा के नाम से भी जाना जाता था। बलिशा पुराण के अनुसारए यह भगवान शिव की सिद्ध पीठ थी। पर्वत के सबसे ऊंचे भाग पर एक विशाल मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान राम ने स्वयं भगवान मधुसूदन की स्थापना की थी। वर्तमान समय में स्थित इस मंदिर का निर्माण जहांगीर के समय में करवाया गया था। इस मंदिर को नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्तए यहां पर एक विद्यापीठ भी है। काफी संख्या में लोग दूर.दूर से यहां ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते हैं। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर के यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
रुपस
चन्दन नदी के तट पर स्थित यह गांव भागलपुर-दुमका मार्ग के पश्चिम से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है। यह काफी प्राचीन गांव है। गांव में देवी काली और दुर्गा का प्राचीन मंदिर है। प्रत्येक वर्ष काली पूजा और दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। काफी संख्या में लोग इस मेले में सम्मिलित होते हैं।
अमरपुर
बांका से लगभग 19 किलोमीटर की दूरी पर अमरपुर खण्ड स्थित है। भागलपुर से अमरपुर 26 किलोमीटर की दूरी पर है। पौराणिक कथा के अनुसारए इस गांव की स्थापना बिहार के गर्वनर शाह उमर वाजिर ने की थी।
असौटा
कहा जाता है कि इस गांव की स्थापना महारानी चन्दरजोती ने की थी। वह खारगपुर से यहां पर आई थी। महारानी ने यहां पर एक किले और असौटा सरोवर कुंड का निर्माण करवाया था। इसके अलावा, उन्होंने अपने पुत्र के लिए यहां एक मस्जिद का निर्माण करवाया था। कुछ समय बाद यह किला और मस्जिद नष्ट कर दी गई थी।
ज्येष्ठ गौर मठ
 चन्दन नदी के तट पर स्थित यह जगह अमरपुर के पूर्व से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज्येष्ठ गौर स्थान शिव मंदिर है जो कि पर्वत पर स्थित है। पर्वत के सबसे ऊंचे हिस्से को ज्येष्ठ गौर पहर के नाम से जाना जाता है। यहां पर एक काली मंदिर और प्राचीन कुंआ भी है। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
श्रावण मेला
 प्रत्येक वर्ष श्रवण माह में (जुलाई-अगस्त) में भक्त (कावडिय़ा) जब सुल्तानगंज से देवघर से रास्ते जाते हैं तो वह साथ में भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने के लिए ले जाते हैं। पूरे एक माह तक इस मार्ग में भक्तों की काफी भीड़ रहती है।
अनूठा गांव : कुमारडीह
आज जहां मांसाहार के प्रति लोगों का रूझान बढ़ रहा है वहीं बिहार के बांका जिले में आज भी एक ऐसा गांव है जहां नई नवेली दुल्हन को प्रवेश से पूर्व ही शाकाहारी होने का संकल्प लेना पड़ता है।  बांका जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर आराहाट तथा धोरैया प्रखंड की सीमा पर कुमारडीह गांव स्थित है। यहां की आबादी करीब 350 है। यहां अधिकांश लोग यादव जाति के हैं। इस गांव में वधू को प्रवेश से पूर्व आजीवन शाकाहारी होने का संकल्प लेना पड़ता है। यहां मान्यता है कि यदि कोई दुल्हन भूलवश मांस का सेवन कर लेती है तो उसे गंगा स्नान करके ही इस पाप से मुक्ति मिल सकती है। गांव के बुजुर्ग राजेन्द्र यादव की मानें तो गांव में इस परंपरा का चलन काफी पुराना है। उन्होंने बताया कि लगभग दो-ढाई सौ वर्ष पूर्व पूरे गांव में 10 वर्ष तक किसी भी दंपत्ति को संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। तभी कोई बाबा आए जिन्होंने यहां के लोगों को मांसाहार नहीं करने की सलाह दी। तभी से इस गांव में मांसाहार पूरी तरह से बंद है और नई दुल्हनों को भी यहां प्रवेश के पूर्व ही शाकाहरी रहने का संकल्प लेना पड़ता है। यही नहीं अगर इस गांव के लोग अपनी लड़की का विवाह भी तय करते हैं तो उस संबंधी से पहले ही निवेदन किया जाता है कि उनकी बेटी को मांस और मछली खाने के लिए दबाव नहीं डाला जाएगा। वह बताते हैं कि यहां के लोगों की कोशिश तो यही होती है कि किसी ऐसे परिवार में रिश्ता ही नहीं किया जाए जहां मांस का सेवन होता है। वह बताते हैं कि यहां के लोग अपने बेटे या बेटी की शादी तय होने के पूर्व ही इस बात को बता देते हैं। शाकाहार के प्रति निष्ठा का आलम यह है कि यहां के लोग गांव के बाहर भी जाते हैं तो अपने साथ खाने-पीने का सामान साथ ले जाते हैं। यहां के समारोहों में मांस का कोई स्थान नहीं होता है।
कैसे जाएं
वायु मार्ग : यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। पटना से बांका 263 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग : सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बांका जंक्शन है। रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से यहां पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : भारत के कई प्रमुख शहरों से बांका सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।

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