Wednesday 20 March 2013

पर्यटकों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता : चिरंजीवी


 नई दिल्ली। आगरा में ब्रिटिश पर्यटक के साथ मार-पीट की कोशिश पर दुख व्यक्त करते हुए पर्यटन मंत्री
के. चिरंजीवी ने आज देश में पर्यटकों की रक्षा और सुरक्षा की जरूरत पर बल दिया। पर्यटन मंत्रालस की सलाहकार समिति को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यटकों की रक्षा और सुरक्षा उनका सूची में पहली प्राथमिकता हैं।
 उन्होंने समिति के सदस्यों को सूचित किया कि उन्होंने घटना में शामिल आगरा के होटल के तीन स्टार रेटिंग को तुरंत निलंबित करने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने होटल का लाइसेंस रद्द करने के लिए भी कारण-बताओ नोटिस भेजा है। चिरंजीवी ने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे से बात कर अनुरोध किया कि वे पर्यटकों विशेष तौर पर महिलाओं और बच्चों की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित प्रणाली बनाएं। उन्होंने समिति को बताया कि उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क कर उनके राज्यों में पर्यटकों के लिए उचित सुरक्षा व्यवस्था करने को कहना शुरू किया है। पर्यटन मंत्रालय ने वर्ष 2011 को बेस वर्ष मानते हुए वर्ष 2016 तक विदेशी पर्यटकों की संख्या को दोगुना करने
का लक्ष्य रखा है। चिरंजीवी ने कहा, ''इसका अर्थ है कि हमें विदेशी पर्यटकों की आगमन को प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत बढ़ाना होगा।

Monday 18 March 2013

...एमपी गजब


 एमपी अजब है सबसे गजब है। एक नहीं दो नहीं सैकड़ों यहां शेर है। मांडू का महल है या जहाज है कोई बता दें...एमपी गजब है।
भारत के हृदय स्थली में बसा मध्यप्रदेश हमेशा से ही पर्यटकों अपनी ओर आकर्षित करता आया है। मध्य प्रदेश में पर्यटन के ऐसे बहुत से स्थल है जहां असंख्य सैलानी इन्हें देखने आते हैं। धार्मिक महत्वड्ड के अलावा पुरातात्विक महत्व के इन स्थलों में कान्हा किसली, महेश्वर खजुराहो, भोजपुर, ओंकारेश्वर, सांची, पचमढ़ी, भीमबेटका, चित्रकूट, मैहर, भोपाल, बांधवगढ़, उज्जैन आदि स्थल  पर्यटकों को मध्य प्रदेश में आने को बेकरार करते हैं।

कान्हा  : कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान हैं।  कान्हा में वन्यप्रणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातियां है। यहां बामनी दादर एक सनसेट प्वाइंट है। यहां से सांभर और हिरण जैसे वन्यप्रणियों को आसानी से देख जा सकता है। लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणी कम ही देखने को मिलते हैं। कान्हा जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क माग से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी विमातल जबलपुर में हैं। इसे देखने के लिए किराये पर जीप, टाइगर ट्रेकिंग के लिए हाथी पर सवार होकर उद्यान को देख सकते हैं।
महेश्वर : पौराणिक ग्रंथों रामायण और महाभारत में महेश्वर को महिष्मती के नाम से संबोधित किया गया है। महेश्वर किले के अंदर रानी अहिल्याबाई की राजगद्दी पर बैठी एक प्रतिमा रखी गई हैं। महेश्वर घाट के आसपास कालेश्वर, राजराजेश्वर, विठ्ठलेश्वर और अहिलेश्वर के सुन्दर मंदिर हैं। इंदौर विमानतल से 91 किलोमीटर पर महेश्वर स्थित हैं।
खजुराहो : मंदिरों की आकर्षण स्थापत्य कला का एक नमूना खजुराहो के मंदिरों में देखा जा सकता हैं। एक हजार वर्ष पूर्व चंदेला राजपूतों के साम्राज्य में बनाए गए 85 मंदिर इनमें से वर्तमान में 22 मंदिर ही बेहतर स्थित में हैं। खजुराहो विश्व पर्यटन स्थल के रूप में अपनी अलग ही पहचान रखता हैं। यहां भोपाल, महोबा, हरबालपुर, सतना, पन्ना से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। खजुराहो दिल्ली, आगरा से वायुयान द्वार भी पहुंचा जा सकता हैं।
भोजपुर : वास्तुकला का अनुपम संगम
राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर 11 वीं सदी के परमारवंशीय राजा भोज प्रथम द्वारा बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है भोजपुर। इसे भोजेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्यटन स्थल पर स्थापित मंदिर की विशालता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लंबा, 25 मीटर चैड़ा और 4 मीटर ऊंचा है।  भारी भरकम पत्थरों से बना यह चबूतरा अपने आप में अद्वितीय है। हजारों टनों की वजनदार अनेक पत्थरों को इस चबूतरे पर चढ़ाकर मंदिर के गर्भगृह का निर्माण किया गया है। मान्यता है कि यहां स्थापित शिवलिंग देश का सबसे ऊंचा शिवलिंग है 26 फीट ऊंचाई के गढ़े हुए गौरी पट्ट पर स्थित शिवलिंग की ऊंचाई साढ़े सात फीट तथा उसकी परिधि 18 फीट है। शिव भक्त ने उक्त मंदिर का निर्माण अपने पिता की स्मृति में करवाया था जिसका डिजाइन 'स्वर्गारोहणप्रसादÓ कहलाता है। मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर जैन मंदिर है। जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं है। 20 फीट ऊंची भगवान महावीर स्थापित है।
पर्यटन में अलग ही पहचान रखता हैं मांडू
कहने वाले इसे खंडहरों के गांव के नाम से भी संबोधित करते हैं परंतु इन खंडहरों के बोलते पत्थर हमें इतिहास के कथा बयां करते है जिसमें रानी रूपमती और बादशाह बाज बहादुर के अमर प्रेम और मांडू के शासकों की विशाल, समृद्ध विरासत व शानो-शौकत के साथ ही हरियाली से आच्छादित पर्यटकों का स्वागत करते जहां के प्राचीन दरवाजे। जी हां हम बात कर रहे हैं मांडू की। विंध्याचल की पहाडिय़ों पर स्थित मांडू जिसे मांडवगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। हिंडोला महल, रानी रूपमती का महल, जहाज महल, जामा मस्जिद, अशरफी महल, पाश्र्वनाथ की श्वेत पद्मासन प्रतिमा देखने योग्य है। मांडू में आप नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी देख सकते हैं। इसके अलावा आप अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मघत की मस्जिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करताी है। जुलाई से मार्च तक यहां सैलानियों का जमघट लगा रहता है। यहीं एक रेवा कुंड का निर्माण बादशाह बाजबहादुर ने अपनी प्रेमिका रानी रूपमती के महल में पानी की प्र्याप्त व्यवस्था के स्त्रोत के रूप में करवाया था। मांडू में देवादिदेव नीलकंठ शिवजी का मंदिर है जिसमें जाने के लिए अंदर सीढ़ी उतरना पड़ता है। इस मंदिर के सौन्दर्य और पेड़ों से घिरे तालाब से एक धार नीचे शिवजी का अभिषेक करती हुई प्रतीत होती है।

भीमबेटका : भोपाल से 46 किमी की दूरी पर स्थित है इस पर्यटन स्थल की विशेषता चट्टानों पर हजारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी एवं करीब 500 गुफाएं हैं। यहां प्राकृतिक लाल और सफेद रंगों से वन्यप्राणियों के शिकार दृष्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि चित्र उकेरे गए हैं। भोपाल से नजदीकी के कारण भीमबेटका में रुकने के साधन नहीं हैं। जहां सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता हैं।
पचमढ़ी : प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाना वाला पर्यटन स्थल हैं पचमढ़ी । जिसकी खोज 1857 में की गई थी। जहा वाटर फाल जिसे जमुना प्रपात कहते हैं पचमढ़ी को जलापूर्ति करता हैं। सुरक्षित पिकनिक स्पाट के रूप में विकसित अप्सरा बिहार का जलप्रपात देखते ही बनता हैं। रजत प्रपात, आयरेन पूल, जटाशंकर मंदिर, सुंदर कुड, पांडव गुफाएं, धूपगढ़ भी पर्यटकों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता हैं। धुआंधार फाल्स में पानी एक बड़े झरने के रूप में गिरता हैं। पचमढ़ी का निकटतम रेल्वे स्टेशन पिपरिया में है। जहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता हैं।
शांति का संदेश देता सांची
बुद्धं शरणं गच्छामि भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है। इनमें गया के महाबोधि मंदिर और सांची के स्तूपों का जहां विश्व विरासत में शुमार है वहीं अन्य अनेक स्थानों पर निर्मित स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तम्भ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं उस दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाये हुए सांची को 1989 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भी षामिल किया गया हैं। बौद्ध धर्म का प्रमुख केन्द्र होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं।  यहां एक पुरातत्व संग्रहालय भी दर्शनीय है। शांत वातावरण बुद्ध के शांति के संदेषों का प्रतीक सांची के स्मारक आगन्तुको को चमत्कृत करते हैं। सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकती अतएव भोपाल आकर जाना उपयुक्त रहता है। सांची देष के लगभग सभी नगरों से बस अथवा रेल मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है।
बांधवगढ़ : बांधवगढ़ का इतिहास काफी रोचक है। यह लंबे समय से राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा हैं। बांधवगढ़ का प्रमुख आकर्षण यहां जंगली जीवन, बाधवगढ़ नेशनल पार्क का शेर से लेकर चीतल, नील गाय, चिंकारा, बारहंसिगा, भौंकने वाले हिरण, साभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से लेकर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों का रैन बसैरा हैं। चार सौ अड़तालीस स्कवायर किमी में फेला बाधवगढ़ भारत के नेशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता हैं। यहा जाते समय भड़कीले कपड़ों से बचते हुए काटन के वस्त्र पहनकर जाना चाहिए एवं गरम कपड़े अपने साथ ले जाना नहीं भूलें वन संपदा को नुकसान न पहुंचाये एवं गाईड द्वारा दी गई सलाहों को न नकारें। शिकार करने का विचार मन में भी न लायें। 2 हजार साल पुराना पहाड़ी पर बना किलाए भी देखने लायक स्थल हैं। बाधवगढ़ रीवा के शहडोल जिले में स्थित हैं। रीवा मध्य प्रदेश का प्रमुख नगर होने के कारण भारत के मध्य में स्थित हैं। यहां आवागमन के सभी पर्याप्त साधन देश भर से उपलब्ध हैं। नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में हैं। रेल मार्ग से भी जबलपुरए कटनीए सतना से जुड़ा हुआ हैं। खजुराहो से बांधवगढ़ के बीच 237 किमी दूरी हैं। दोनों स्थानों के मध्य क्रोकोडाइल रिजर्व घोषित  नदी हैं।
रघुपति राघव राजा राम धुन में खोया ओरछा
देश के गौरवशाली इतिहास में झांसी के पास स्थित ओरछा का एक अपना महत्व है। इससे जुड़ी तमाम कहानियां और किस्से पिछली कई दशकों से लोगों की जुबान पर हैं।
आज भी भगवान राम राजा हैं ओरछा के विश्व का एक मात्र मंदिर जहा भगवान राम की राजा के रूप मे पूजा की जाती है आज भी मध्य प्रदेश पुलिस उनके सम्मान मे गार्ड ऑफ ऑनर देती है सुबह शाम जब आरती होती है और राज भोग लगाया जाता है राजा राम को, कभी बुन्देल राजाओं की राजधानी होता था ओरछा लेकिन बुंदेला राजा मधुकर साह की धर्मपत्नी को भगवान राम से ऐसा अनुराग हुआ की पहले तो उन्होने अयोध्या मे भव्य कनक भवन मंदिर बनवाकर अयोध्या से उनकी प्रतिमा ले जाकर ओरछा मे भी मंदिर बनवाकर स्थापित करने की ठानी, भगवान राम ने सपने मे दर्शन देकर कहा की मैं ओरछा मे तभी विराजित हूँगा जब ओरछा मे किसी का राज न हो, कहते हैं तभी से बुंदेलों ने राम को राजा की मान्यता देकर उनके भव्य मंदिर का निर्माण किया और भगवान राम को राजा मानकर पूजा करने लगे जिसकी परंपरा आज तक कायम है।
संगमरमरी नगरी जबलपुर
भोपाल से 330 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्राचीन शहर जबलपुर। रामायण एवं महाभारत की कथाएं इस शहर से जुड़़ी हुई हैं। यह शहर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। जबलपुर का भौगोलिक क्षेत्र पथरीली, बंजर जमीन और पहाड़ों से आच्छादित है। जबलपुर में आपको बेशुमार संगमरमर की चट्टानें देखने को मिलेंगी। इनके बीच से बहती हुई नर्मदा चांदी की लकीर जैसी दिखाई देती है। जबलपुर का खास आकर्षण यहां का भेड़ाघाट और धुआंधार जलप्रपात है। यहां नर्मदा संगमरमरी चट्टानों के बीच से बहुत संकरे रास्ते से बहती है। इसके बाद एक बहुत गहरे स्थान में पानी गिरने से पानी की जगह धुआं ही धुआं दिखाई देता है। गर्मियों में इस प्रपात के पास खड़े होने राहत मिलती है। इसके अलावा संगराम सागर और बजाना मठ राजा संगराम शाह ने इन इमारतों का निर्माण किया था। कहते हैं कि यहां तिलवाराघाट पर महात्मा गांधी की अस्थियां विसर्जित की गई थीं। 1939 में कांग्रेस का सम्मेलन इस स्थान पर आयोजित किया गया था। माला देवी मंदिर का बारहवीं सदी में निर्माण किया गया था। इस मंदिर में माला देवी या लक्ष्मी की मूर्ति श्रद्धालुओं ने स्थापित की है। गोंड राजा मदन शाह ने इस महल को पहाड़़ों के ऊपर निर्मित किया था। आसमान की ऊंचाइयों से स्पर्श करते इस किले से इस सुंदर नगरी को निहारा जा सकता है।
महाकाल की नगरी उज्जैन

क्षिप्रा नदी के किनारे बसे उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। धार्मिक महत्व के अलावा इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। विक्रमादित्य और अशोक जैसे राजाओं ने यहां राज किया है। कालिदास ने अपनी हृदयस्पर्शी रचनाएं यहीं रची हैं। इन सबकी निशानियां आज भी यहां देखी जा सकती हैं। महाकालेश्वर मंदिर की महत्ता का वर्णन अनेक पुराणों में भी मिलता है। यह मंदिर उज्जैन के लोंगों के जीवन का अहम  हिस्सा है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह स्वयंभू है। अन्य मंदिरों में मंत्रों द्वारा इसे शक्ति प्रदान की जाती है लेकिन यहां का लिंग अपनी शक्ति स्वयं प्राप्त करता है। महाकाल मंदिर के ऊपर ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति रखी है। भगवान गणेश, कार्तिकेय और देवी पार्वती की प्रतिमाएं पश्चिम, पूर्व और उत्तर में स्थापित हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे भर्तृहरी गुफाओं और गढ़कालिका मंदिर के पास स्थित पीर मत्स्येंद्रनाथ बहुत की आकर्षक स्थल है। यह जगह नाथों के महान नेता मत्स्येंद्रनाथ को समर्पित है। मुस्लिम और नाथ अनुयायी अपने संतों को पीर कहा करते हैं। इसलिए दोनों ही मतावलंबी इस स्थान को पवित्र मानते हैं। यहां आसपास की बिखरी कई चीजें 6ठीं और 7वीं शताब्दी के आसपास की हैं।