Tuesday 22 January 2013

टेंपल सिटी कांचीपुरम

कहीं कला के लिए अपार श्रद्धा है तो कहीं देव भक्ति में रमे लोगों की संख्या ज्यादा है। कुछ स्थानों की सुन्दरता देखकर स्वर्ग की उपमा दे दी है, तो किसी स्थान को देवभूमि करार दे दिया गया है। भारत देश विविधताओं से भरा हुआ है। विभिन्न संस्कृतियों को अपने समाहित किए इस देश के राज्यों को कुछ और करीब से जानने के लिए हमारे साथ चलिए। पलार नदी के कि नारे बसा क ांचीपुरम भी देश का एक ऐसा ही अद़्भुत शहर है। क ांचीपुरम को पवित्र नगरों में गिना जाता है। इस शहर में तक रीबन 126 मंदिर स्थित हैं, जिस वजह से इसे 'टेप्पल सिटीÓ के नाम से भी जाना जाता है। कांचीपुरम के मंदिरों में आपको द्रविड़ शैली क ा आर्कि टेक्चर देखने क ो मिलेगा। यहां क ा सबसे बड़ा मंदिर भगवान शिव के लिए बना एक ंबरनाथ मंदिर है। इसी मंदिर के प्रांगण में स्थित एक 3,500 साल पुराना आम का पेड़ भी है, जिसे लोग बहुत पवित्र मानते हैं। देवी पार्वती के रुप को समर्पित क ामाक्षी अत्मा मंदिर अपने खूबसूरत आर्कि टेक्चर के लिए जाना जाता है। 11वीं शताब्दी में बने वर्धराजा पेरु मल मंदिर क ा भी पर्यटक ों में बहुत क्र ेज रहता है। इतिहास पर डाले नजर
कांचीपुरम ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में महत्त्वपूर्ण नगर था। सम्भवत: यह दक्षिण भारत का ही नहीं बल्कि तमिलनाडु का सबसे बड़ा केन्द्र था। बुद्धघोष के समकालीन प्रसिद्ध भाष्यकार धर्मपाल का जन्म स्थान यहीं था, इससे अनुमान किया जाता है कि यह बौद्धधर्मीय जीवन का केन्द्र था। यहाँ के सुन्दरतम मन्दिरों की परम्परा इस बात को प्रमाणित करती है कि यह स्थान दक्षिण भारत के धार्मिक क्रियाकलाप का अनेकों शताब्दियों तक केन्द्र रहा है। कांचीपुरम 7वीं शताब्दी से लेकर 9वीं शताब्दी में पल्लव साम्राज्य का ऐतिहासिक शहर व राजधानी हुआ करती थी। छठी शताब्दी में पल्लवों के संरक्षण से प्रारम्भ कर पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं शताब्दी तक विजयनगर के राजाओं के संरक्षणकाल के मध्य 1000 वर्ष के द्रविड़ मन्दिर शिल्प के विकास को यहाँ एक ही स्थान पर देखा जा सकता है। 'कैलाशनाथार मंदिरÓ इस कला के चरमोत्कर्ष का उदाहरण है। एक दशाब्दी पीछे का बना 'बैकुण्ठ पेरुमलÓ इस कला के सौष्ठव का सूचक है। उपयुक्त दोनों मन्दिर पल्लव नृपों के शिल्पकला प्रेम के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। क्या देखें कैलाशनाथ मंदिर कांचीपुरम शहर के पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर कांचीपुरम का सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे शानदार मंदिरों में एक है। इस मंदिर को आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा ने अपनी पत्नी की प्रार्थना पर बनवाया था। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेन्द्र वर्मन तृतीय के करवाया था। मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दर्शाया गया है। बैकुंठ पेरूमल मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदीवर्मन पल्लवमल्ला ने करवाया था। मंदिर में भगवान विष्णु को बैठे, खड़े और आराम करती मुद्रा में देखा जा सकता है। मंदिर की दीवारों में पल्लव और चालुक्यों के युद्धों के दृश्य बने हुए हैं। मंदिर में 1000 स्तम्भों वाला एक विशाल हॉल भी है जो पर्यटकों को बहुत आकषित करता है। प्रत्येक स्तम्भ में नक्काशी से तस्वीर उकेरी गई हैं जो उत्तम कारीगर की प्रतीक हैं। कामाक्षी अम्मन मंदिर कामाक्षी अमां मंदिर यह मंदिर देवी शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं। 1.6 एकड़ में फैला यह मंदिर नगर के बीचों-बीच स्थित है। मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुनरोद्धार 14 वीं और 17वीं शताब्दी में करवाया गया। वरदराज मंदिर यह मंदिर उस काल के कारीगरों की कला का जीता जागता उदाहरण है। वरदराज मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर में उन्हें देवराजस्वामी के रूप में पूजा जाता है। मंदिर में 100 स्तम्भों वाला एक हाल है जिसे विजयनगर के राजाओं ने बनवाया था। एकमबारानाथर मंदिर यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर को पल्लवों ने बनवाया था। बाद में इसका पुर्ननिर्माण चोल और विजयनगर के राजाओं ने करवाया। 11 खंड़ों का यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे ऊंचे मंदिरों में एक है। मंदिर में बहुत आकर्षक मूर्तियां देखी जा सकती हैं। साथ ही यहां का 1000 पिलर का मंडपम भी खासा लोकप्रिय है। वेदानथंगल और किरीकिरी पक्षी अभ्यारण्य यह दोनों पक्षी अभ्यारण्य कांचीपुरम के अंदरूनी भाग में स्थित हैं। वेदानथंगल 30 हेक्टेयर और किरीकिरी 61 हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह अभ्यारण्य बबूल और बैरिंगटोनिया पेड़ो से भर हुए हैं। इन अभ्यराण्य में पाकिस्तान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साइबेरियन पक्षियों को देखा जा सकता है। पिन्टेल्स, स्टिल्ट्स, गारगानी टील्स और सैंडपाइपर जसी पक्षियों की प्रजातियां यह नियमित रूप से देखी जा सकती हैं। इन दोनों अभ्यराण्य में तकरीबन 115 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। साडिय़ों की करे खरीददारी कांचीपुरम सिल्क फैब्रिक और हाथ से बुनी रेशमी साडिय़ों के लिए भी यह देश-दुनिया में मशहूर है। बुनाई करने वाले उच्च क्वालिटी की सिल्क और शुद्ध सोने के तार इन साडिय़ों पर इस्तेमाल कर एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत साडिय़ों का निर्माण करते हैं। इसलिए इसे सिल्क सिटी भी कहते हैं। कुछ खऱीदने की इच्छा हो तो इन सिल्क की साडिय़ों की शॉपिंग ज़रूर करें क्योंकि दूसरे शहरों के मुकाबले ये यहाँ उचित व कम दामों में मिल जाती हैं। ९०० वर्ष पहले का अस्पताल तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में तिरुमुकुदल गाँव के एक प्राचीन मंदिर में मिले एक शिलालेख से पता चलता है की यहाँ करीब 900 वर्ष पहले 15 इमक वाला एक अस्पताल और वैदिक स्कूल था वेंकटेश पेरूमल मंदिर में यह शिलालेख पुरातत्व विद केवी सुब्रमण्यम ने खोजा है शिला लेख में असुरा सलाई का उल्लेख है जो एक अस्पताल था भारतीय पुरातव सर्वे के अनुसार मंदिर से लगे इस अस्पताल में अंपका स्कूल के छात्रो और मंदिर के कर्मचारियों का उपचार किया जाता था इस मंदिर को संरक्षित इमारत घोषित किया जा चुका है और इसका प्रबंधन ऐ यस आई के जिम्मे है शिला लेख के अनुसार वीरचोला नामक अस्पताल में 15 बिस्तर थे इसमे काम करने वाले करने वाले कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त थी जिसमे कोदंद रामन अस्वथामन भट्टन नामक एक सर्जन कई नर्से नौकर और एक नाइ शामिल थे अस्पताल के कर्मचारियों को वेतन दिया जाता था अस्पताल में राखी गयी करीब 20 दवाईयों का ब्योरा भी शिलालेख में है इन दवायों से बबासीर पीलिया बुखार पेसाब की नली की बीमारियाँ टीबी रक्तस्राव आदि का इलाज किया जाता था। कैसे पहुंचे वायु मार्ग : मंदिरों का शहर कांचीपुरम जाने लिए वायुमार्ग अच्छा है। यहां पहुंचने के लिए निकटतम एयरपोर्ट चैन्नई है जो लगभग 75 किमी. दूर है। चेन्नई से कांचीपुरम लगभग 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है। आप एयरपोर्ट से बस से जा सकते हैं। इसके अलावा आप यहां से टैक्सी लेकर जा सकते हैं। रेल मार्ग देश के प्रत्येक कोने से रेलमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। कांचीपुरम का रेलवे स्टेशन चैन्नई, चेन्गलपट्टू, तिरूपति और बैंगलोर से जुड़ा है। स्टेशन से आप अपनी यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। सड़क मार्ग कांचीपुरम तमिलनाडु के लगभग सभी शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। विभिन्न शहरों से कांचीपुरम के लिए नियमित अंतराल में बसें चलती हैं।

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