Thursday 3 January 2013

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मभूमि-कर्मस्थली सिवान


भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा कई अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि एवं कर्मस्थली के लिए सिवान को जाना जाता है।  बिहार प्रान्त में सारन प्रमंडल के अंतर्गत सिवान है। यह बिहार के उत्तर पश्चिमी छोड़ पर उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जिला है। जिला मुख्यालय सिवान शहर दाहा नदी के किनारे बसा है। इसके उत्तर तथा पूर्व में क्रमश: बिहार का गोपालगंज तथा सारण जिला तथा दक्षिण एवं पश्चिम में क्रमश: उत्तर प्रदेश का देवरिया और बलिया जिला है। कुछ दिनों पहले तक सिवान जिला कुख्यात सैयद शहाबुद्दीन के जिले के नाम से जाना जाता था। लेकिन आज यहां का माहौल काफी शांतिपूर्ण है। यहां आकर आप अपने को गौरन्वावित महसूस करेंगे।
सिवान पांचवी सदी ईसापूर्व में सिवान की भूमि कोसल महाजनपद का अंग था। कोसल राज्य के उत्तर में नेपालए दक्षिण में सर्पिका (साईं) नदी, पुरब में गंडक नदी तथा पश्चिम में पांचाल प्रदेश था। इसके अंतर्गत आज के उत्तर प्रदेश का फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, गोरखपुर तथा देवरिया जिला के अतिरिक्त बिहार का सारन क्षेत्र (सारन, सिवान एवं गोपालगंज) आता है। आठवीं सदी में यहाँ बनारस के शासकों का आधिपत्य था। 15 वीं सदी में सिकन्दर लोदी ने यहाँ अपना आधिपत्य स्थापित किया। बाबर ने अपने बिहार अभियान के समय सिसवां के नजदीक घाघरा नदी पार की थी। बाद में यह मुगल शासन का हिस्सा हो गया। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी के विवरण अनुसार कर संग्रह के लिए बनाए गए 6 सरकारों में सारन वित्तीय क्षेत्र एक था और इसके अंतर्गत वर्तमान बिहार के हिस्से आते थे। 17वीं सदी में व्यापार के उद्देश्य से यहाँ डच आए लेकिन बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन 1765 में अंग्रेजों को यहाँ का दिवानी अधिकार मिल गया। 1829 में जब पटना को प्रमंडल बनाया गया तब सारन और चंपारण को एक जिला बनाकर साथ रखा गया। 1908 में तिरहुत प्रमंडल बनने पर सारन को इसके साथ कर इसके अंतर्गत गोपालगंजए सिवान तथा सारन अनुमंडल बनाए गए। 1857 की क्रांति से लेकर आजादी मिलने तक सिवान के निर्भीक और जुझारु लोगों ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी। 1920 में असहयोग आन्दोलन के समय सिवान के ब्रज किशोर प्रसाद ने पर्दा प्रथा के विरोध में आन्दोलन चलाया था। 1937 से 1938 के बीच हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने किसान आन्दोलन की नींव सिवान में रखी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में यहाँ के मजहरुल हक़, राजेन्द्र प्रसाद, महेन्द्र प्रसाद, फूलेना प्रसाद जैसे महान सेनानियों ने समूचे देश में बिहार का नाम ऊँचा किया है। स्वतंत्रता पश्चात 1981 में सारन को प्रमंडल का दर्जा मिला। जून 1970 में बिहार में त्रिवेदी एवार्ड लागू होने पर सिवान के क्षेत्रों में परिवर्तन किए गए। सन 1885 में घाघरा नदी के बहाव स्थिति के अनुसार लगभग 13000 एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश को स्थानान्तरित कर दिया गया जबकि 6600 एकड़ जमीन सिवान को मिला।
पर्यटन स्थलदोन स्तूप (दरौली) दरौली प्रखंड के दोन गाँव में यह एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है। दरौली नाम मुगल शासक शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह के नाम पर पड़ा है। ऐसी मान्यता है कि दोन में भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार यहाँ हुआ था। हिंदू लोग यह मानते हैं कि यहाँ किले का अवशेष महाभारत काल का है जिसे गुरु द्रोणाचार्य ने बनवाया था। उपलब्ध साक्ष्यों को देखने से इस मान्यता को बल नहीं मिलता। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वर्णन में इस स्थान पर एक पुराना स्तूप होने का जिक्र किया है। स्तूप के अवशेष स्थल पर तारा मंदिर बना है जिसमें नवीं सदी में बनी एक मूर्ति स्थापित है।
अमरपुर
 दरौली से 3 किलोमीटर पश्चिम में घाघरा नदी के तट पर स्थित इस गाँव में मुगल शाहजहाँ के शासनकाल (1626-1658) में यहाँ के नायब अमरसिंह द्वारा एक मस्जिद का निर्माण शुरु कराया गया जो अधूरा रहा। लाल पत्थरों से बनी अधूरी मस्जिद को यहाँ देखा जा सकता है।
मैरवा धाम

सिवान के मैरवा प्रखंड में हरि बाबा का स्थान के नाम से प्रचलित झरही नदी के किनारे इस स्थान पर कार्तिक और चैत्र महीने में मेला लगता है। यह ब्रह्म स्थान एक संत की समाधि पर स्थित है। इस स्थान पर डाक बंग्ला के सामने बने चनानरी डीह (ऊँची भूमि) पर एक अहिरनी औरत के आश्रम को पूजा जाता है।
मेंहदार
 सिसवां प्रखंड में स्थित इस गाँव के बावन बीघे में बने पोखर के किनारे शिव एवं विश्वकर्मा भगवान का मंदिर बना है। स्थानीय लोगों में इस पोखर को पवित्र माना जाता है। यहाँ शिवरात्रि एवं विश्वकर्मा पूजा (17 सितंबर) को भाड़ी भीड़ जुटती है।
लकड़ी दरगाह
मुस्लिम संत शाह अर्जन के दरगाह पर रब्बी-उस-सानी के 11 वें दिन होनेवाले उर्स पर भाड़ी मेला लगता है। इस दरगाह पर लकड़ी का बहुत अच्छी कासीगरी की गयी है। कहा जाता है कि इस स्थान की शांति के चलते शाह अर्जन बस गए थे और उन्होंने 40 दिनों तक यहाँ चिल्ला किया था।
हसनपुरा
 हुसैनीगंज प्रखंड के इस गाँव में अरब से आए चिश्ती सिलसिले के एक मुस्लिम संत मख्दूम सैय्यद हसन चिश्ती आकर बस गए थे। यहाँ उन्होंने खानकाह भी स्थापित किया था।
भिखाबांध
 महाराजगंज प्रखंड में इस जगह पर एक विशाल पेड़ के नीचे भैया-बहिनी का मंदिर बना है। कहा जाता है कि 14 वीं सदी में मुगल सेना से लड़ाई में दोनों भाई बहन मारे गए थे।
जिरादेई
 सिवान शहर से 13 किमी पश्चिम में देशरत्न डा राजेन्द्र प्रसाद का जन्म स्थान को देखकर आपक गौरन्वावित महसूस करेंगे। डा. राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के तत्कालीन सारण और आज के सिवान जिले के जिरादेई में तीन दिसंबर 1884 को हुआ। इनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। इनके पिता जी पर्सियन थे और संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे।
फरीदपुर
 बिहार रत्न मौलाना मजहरूल हक़ का जन्म स्थान है।
सोहगरा
 शिव भगवान का मंदिर है। जहा जाने के लिए गुठनी चौराहा से तेनुआ मोड़, और गाँव नैनिजोर होते हुए सोहगरा मंदिर जाया जाता है। यहाँ शिवरात्रि और सावन मे भाड़ी भीड़ जुटती है।

हड़सरयह दुरौधा स्टेशन से दो किलोमीटर अन्दर है। यहां काली मां का मंदीर है जो देवी थावे मंदिर में है। थावे जाते समय इनका यही अंतिम पडाव था। यहां कोई मंदिर नही है अब आस्था गहरी है।
पातार
 इस गांव के प्र्रसिद्ध राम जी बाबा का मन्दिर है। यहां के लोगों की मान्यता है कि किसी भी आदमी को सर्प काटता है तो यहाँ पर आने से सही हो जाता है। इसी गांव में श्री विश्वनाथ पाण्डेय जी के सुपुत्र प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य मुरारी पाण्डेय जी का जन्मस्थली हे।
नरहन
 जिला मुख्यालय से 30 किमी0 दक्षिण में अवस्थित है। यह एक हिन्दुओ क प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। कार्तिक पुर्निमा एवम मकर सक्रान्ति के दिन यहां मेले का आयोजन होता है जिसमे काफी मात्र्रा मे श्रद्धालु आते है और सरयु नदी के पवित्र जल मे स्नान करते है । यहा आश्विन पुर्निमा के दिन दुर्गा पुजा के बाद एक भब्य जुलुश का आयोजन होता है जिसे देखने दूर-दूर से लोग आते है। कुछ प्रसिद्ध स्थलो में श्री नाथ जी का महाराज मंदिर, मां भगवती मंदिर, राम जानकी मंदिर, मां काली मंदिर एवं ठाकुर जी मंदिर है जो इस गांव को चारो ओर से घेरे हुए है।

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