Wednesday 2 January 2013

गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा गोपालगंज


गोपालगंज भारत के बिहार राज्य में सारन प्रमंडल अंतर्गत एक शहर एवं जिला है। गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा यह भोजपुरी भाषी जिला ईंख उत्पादन के लिए जाना जाता है। मध्यकाल में चेरों राजाओं तथा अंग्रेजों के समय यह हथुवा राज का केंद्र रहा है। थावे स्थित दुर्गा मंदिर एवं दिघवा दुबौली प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
ऐतिहासिक स्थिति
वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर प्रस्थान किया। अग्नि ने उन्हे गंडक के पास अपने राज्य की स्थापना के लिए कहा जो विदेह कहलाया। आर्यों की एक शाखा सारन में बस गया। महाजनपद काल में यह प्रदेश कोशल गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह शक्तिशाली मगध के मौर्य, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। सारन में मिले साक्ष्य यह साबित करते हैं कि लगभग 3000 ईसा पूर्व में भी इस हिस्से में आबादी कायम थी। संभव है कि आर्यों के यहाँ आनेपर सत्ता संघर्ष हुआ हो। 13 वीं सदी में मुसलमान शासक ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा किया लेकिन इसके पूर्व चेरों साम्राज्य के राजा काफी समय यहाँ अपनी सत्ता तक कायम रखने में सक्षम रहे। शोरे के व्यापार के चलते सबसे पहले डचों का यहाँ आगमन हुआ लेकिन बक्सर युद्ध के बाद 1765 में अंग्रेजों ने यहाँ अपना आधिपत्य कायम कर लिया। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गोपालगंज की भूमि आजादी की माँग के नारों के बीच उथल-पुथल भरा रहा। 2 अक्टुबर 1972 को यह सारन से अलग स्वतंत्र जिला बना।
देखने लायक जगह
थावे :
 गोपालगंज में थावे स्थित हथुवा राजा द्वारा बनवाया गया दुर्गा मन्दिर सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी मात्र 5 किमी है। चैत्र महीने में यहाँ विशाल मेला लगता है। मंदिर के पास ही देखने योग्य एक विशाल पेड़ है जिसका वानस्पतिक वर्गीकरण नहीं किया जा सका है। मन्दिर की मूर्ति एवं विशाल पेड़ के बारे में कई कहानियाँ प्रचलित है। मां थावेवाली स्थल : गोपालगंज का गौरव
बिहार प्रान्त के गोपालगंज शहर से मात्र 6 किलो मीटर की दुरी पर सिवान जानेवाले राजमार्ग पर थावे नामक एक जगह है, जहां 'मां थावेवालीÓ का अति प्राचीन मंदिर है । मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं। कामरूप (असम) जहां कामख्यादेवी का बड़ा ही प्राचीन और भव्य मंदिर हैए मां थावेवाली वहीं से थावे (गोपालगंज) आयीं, इसीकारण मां को 'कामरूप-कामख्या देवीÓ के नाम से भी जाना जाता है। थावे में मां कामाख्या के एक बहुत सच्चे भक्त रहषु स्वामी थे किन्तु हथुआ (आधुनिक समय में गोपालगंज जिले का एक अनुमंडल, किन्तु मध्यकाल का एक विख्यात राज्य। तत्कालीन समय में थावे उसी राज्य के अन्तर्गत आता था) के तत्कालीन राजा मनन सिंह की नजर में रहषु स्वामी एक ढोंगी भगत मात्र ही थे। अचानक एक दिन राजा मनन सिंह (जो कि अपनी राजसी मद में चूर रहता था) ने अपने सैनिकों को रहषु स्वामी को पकड़ लाने का आदेश दिया एवं उनके आने पर राजा ने कहा कि यदि वाकई मां का सच्च भक्त है तो उन्हे मेरे सामने बुला या फिर मृत्युदण्ड के लिए तैयार रह। रहषु स्वामी के द्वारा बार-बार समझाने पर पर भी राजा मनन सिंह नहीं माना एवं कहने लगा कि यदि तुने मां को नहीं बुलाया तो तेरे साथ थावे की पूरी जनता को भी मृत्युदण्ड दिया जाएगा। रहषु जी के पास मां जगद्धात्री को बुलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा । रहषु स्वामी जी मां को सुमिरने लगे तब मां दुर्गा कामाख्या स्थान से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर स्थान में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटनदेवी के नाम से जानी गईं), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहूंची और रहषू स्वामी के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दीं। मां ने जिस जगह पर दर्शन दिया वहां एक भव्य मन्दिर है तथा कुछ दूरी पर रहषु भगत जी का मन्दिर भी स्थापित है। जो भक्तजन मां के दर्शनों के लिए आते हैं वो रहषु स्वामी के मंदिर भी जरुर जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिना रहषुजी का दर्शन किये आपकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। इस मंदिर के पास ही वर्तमान में भी राजा मनन सिंह के महल का खंडहर दिखाई देता है। मां के बारे में लोग कहते हैं कि मां थावेवाली बहुत दयालु और कृपालु हैं और अपने शरण में आये हुए सभी भक्तजनों का कल्याण करती हैं। हर सुख-दु:ख में लोग इनके शरण में आते हैं और मां किसी को भी निराश नहीं करती हैं। किसी के घर शादी-विवाह हो या दु:ख.बीमारी या फिर किसी ने गाड़ी-घोड़ा खरीदी तो सर्वप्रथम याद मां को ही किया जाता है। देश-विदेश में रहने वाले लोग भी साल-दो साल में घर आने पर सबसे पहले मां के दर्शनों को ही जाते हैं। मां थावेवाली के मंदिर की पूरे पूर्वांचल तथा नेपाल के मधेशी प्रदेश में वैसी ही ख्याति है, जैसी मां वैष्णोदेवी की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर। वैसे तो यहां भक्तजनों का आना पूरे वर्षभर चलता रहता है किन्तु शारदीय नवरात्रि एवं चैत्रमास की नवरात्रि में यहां काफ़ी अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं। एवं सावन के महीने में बाबाधाम (देवघर में स्थित) जाने वाले कांवरियों की भी यहां अच्छी संख्या रहती है।
दिघवा दुबौली
 गोपालगंज से 40 किलोमीटर दक्षिण-पूरब तथा छपरा से मशरख जानेवाली रेल लाईन पर 56 किलोमीटर उत्तर में दिघवा-दुबौली एक गाँव है जहाँ पिरामिड के आकार का दो टीला है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये टीले यहाँ शासन कर रहे चेरों राजा द्वारा बनवाए गए थे।
हुसेपुर
 गोपालगंज से 24 किलोमीटर उत्तर-पचिम में झरनी नदी के किनारे हथवा महाराजा का बनवाया किला अब खंडहर की अवस्था में है। यह गाँव पहले हथुवा नरेश की गतिविधियों का केंद्र था। किले के चारों तरफ  बने खड्ड अब भर चुके हैं। किले के सामने बने टीला हथुवा राजा की पत्नी द्वारा सती होने का गवाह है।
लकड़ी दरगाह
 पटना के मुस्लिम संत शाह अर्जन के दरगाह पर लकड़ी की बहुत अच्छी कासीगरी की गयी है। रब्बी-उस-सानी के 11 वें दिन होनेवाले उर्स पर यहाँ भाड़ी मेला लगता है। कहा जाता है कि इस स्थान की शांति के चलते शाह अर्जन बस गए थे और उन्होंने 40 दिनों तक यहाँ चिल्ला किया था।
भोरे
 भोरे गोपाल गंज जिला का एक प्रखण्ड है। भोरे से 2 किलोमीटर दक्षिण में शिवाला और रामगढ़वा डीह स्थित है। शिवाला में शिव का मंदिर व पोखरा है। रामगढ़वा डीह के बारे में यह मान्य़ता है कि यहॉं महाभारत काल के राजा भुरिश्वा की राजधानी थी। इस स्थान पर आज भी महलों के खण्डहरों के भग्नावशेष मिलते हैं तथा प्राचीन वस्तुएँ खुदाई के दौरान निकलती हैं। महाराज भुरिश्वा महाभारत के युद्ध में कौरवों के चौदहवें सेनापति थे। महाराज भुरिश्वा के नाम पर ही इस जगह का नाम भोरे पड़ गया ।
कैसे पहुंचे
सड़क मार्ग
गोपालगंज जिले से वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग तथा दो राजकीय राजमार्ग गुजरती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 85 छपरा से सिवान होते हुए गोपालगंज जाती है। लखनऊ से शुरू होनेवाली राष्ट्रीय राजमार्ग 28 जिले से गुजरते हुए मुजफ्फरपुर और बरौनी जाती है। राजकीय राजमार्ग संख्या 45ए 47ए 53 तथा 90 की कुल लंबाई 52 किलोमीटर है।
रेल मार्ग
दिल्ली-गुवाहाटी रेलमार्ग से हटकर छपरा से कप्तानगंज के लिए जानेवाली रेललाईन पर गोपालगंज एक महत्वपूर्ण जंक्शन है। यह पूर्व मध्य रेलवे के सोनपुर मंडल में पड़ता है। जिले में थावे एक महत्वपूर्ण रेल जंक्शन है। थावे से सिवान के बीच एक मीटर गेज लाईन मौजूद है जो गोरखपुर जाती है। हथुआ से फुल्वरिआ तक एक नयि रैल लिने कि शुरुआत हुइ है। यन्हा से सिवान्ए छापराए भत्तनि तथा वारानाशि तक कि रैल्वय कि सेवा है।यवायु मार्गरू गोपालगंज का नजदीकी हवाई अड्डा सबेया (हथुआ) में है लेकिन यहाँ से विमान सेवाएँ उपलब्ध नहीं है। राज्य की राजधानी पटना में जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई क्षेत्र नागरिक हवाई अड्डा है जहाँ से दिल्ली, कोलकाता, राँची आदि शहरों के लिए इंडियन, स्पाइस जेट, किंगफिसर, जेटलाइट, इंडिगो आदि विमान सेवाएँ उपलब्ध हैं। गोपालगंज से छपरा पहुँचकर राष्ट्रीय राजमार्ग 19 द्वारा 215 किलोमीटर दूर पटना हवाई अड्डा जाया जाता है।



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