Tuesday 1 January 2013

प्रकृति की गोद में बसा नवादा


नवादा दक्षिण बिहार का एक खूबसूरत एवं ऐतिहासिक जिला है। प्रकृति की गोद में बसा नवादा जिला को कई प्रमुख पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। ककोलत जलप्रपात, प्रजातंत्र द्वार, नारद संग्रहालयए सेखोदेवरा और गुनियाजी तीर्थ आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। नवादा के उत्तर में नालंदा, दक्षिण में झारखंड का कोडरमा जिला, पूर्व में शेखपुरा एवं जमुई तथा पश्चिम में गया जिला है। मगही यहाँ की बोली और हिन्दी तथा उर्दू मुख्य भाषाएँ हैं।
नवादा को ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन समय में यह शक्तिशाली मगध साम्राज्य का अंग रहा है। इस जगह पर वृहद्रथए मौर्य, गुप्त एवं कण्व शासकों ने लम्बे समय तक शासन किया है। मगध के शक्तिशाली बनने के पूर्व यह क्षेत्र महाभारत कालीन राजा जरासंध के शासन प्रदेश का हिस्सा था। तपोबन को जरासंध की जन्मभूमि माना जाता है। ऐसी मान्यता भी है कि भीम ने पकडड़ीहा में जरासंध को मल्लयुद्ध में हराया था। मगध के पतन एवं शासन का क्षेत्रीयकरन हो जाने के बाद भी वारसलीगंज से 5 किमी उत्तर.पश्चिम स्थित कुर्किहार, नवादा में पाल वंश का महत्वपूर्ण केंद्र बना रहा। बोधगया एवं पारसनाथ से निकटता के चलते यह क्षेत्र बौद्ध भिक्षुओं एवं जैन मुनियों का तपस्या स्थल रहा है। वारसलीगंज से 10 किमी दूर दरियापुर पार्वती में कपोतक बौद्ध.विहार के अवशेष मिले हैं। अपसर गाँव में राजा आदित्यसेन ने महत्वपूर्ण इमारतें एवं अवलोकितेश्वर की मूर्ति स्थापित करवाई थी। सीतामढी, बराट, नारदीगंज जैसे जगह आदिकाल से हिंदू आस्था के केंद्र रहे हैं।
1857 में अंग्रेजो से लड़ी गयी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय यहाँ के वीर बांकुड़ों ने नवादा को अंग्रेजी शासन से मुक्त करा लिया था। सन 1850 के आसपास अंग्रेजों द्वारा बसाए जा रहे नए उपनिवेश में गिरमिटिया मजदूरों की एक बड़ी खेप गुएनाए फिजी एवं रियूनियन आईलैंड में बस गए जहाँ उन्होंने एक नए भारत का निर्माण किया।
स्वतंत्रता पश्चात भारत के पहले राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने शेखोदेवरा गाँव में सर्वोदय आश्रम की स्थापना की थी। इस आश्रम में जय प्रकाश नारायण ने भी अपना महत्वपूर्ण समय गुजारा। नवादा के पद्म भूषण प्रसाद एवं पंडित सियाराम तिवारी ध्रुपद एवं ठुमरी शैली के श्रेष्ठ गायकों में शुमार हैं। गौरवशाली इतिहास के विविध रंगों में रंगा नवादा जिला पिछले वर्षों में राज्य सरकार की उपेक्षा का शिकार रहा है।

दर्शनीय स्थल
ककोलत जलप्रपात
  प्रकृति में गोद में बसा ककोलत जलप्रपात प्राकृतिक उपहार के अतिरिक्त पुरातत्विक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह झरना समुद्र तल से लगभग 150 से 160 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इस जगह पर पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान एक राजा को सर्पयोनि से मुक्त कराया था। प्रत्येक वर्ष चैत संक्रांति के अवसर पर यहां एक सप्ताह तक मेले का आयोजन होता है। चैत संक्रांति को विशुआ संक्रांति भी कहा जाता है। महाभारत में जिस काम्यक वन का वर्णन किया गया था, वर्तमान समय में वह आज का ककोलत है। इसके अलावा, ककोलत पर्वत बहुत ही खूबसूरत पिकनिक स्थल है।फतेहपुर-गोविन्दपुर मार्ग पर थाली से पांच किलोमीटर दक्षिण वन में और नवादा जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्व में 33 किलोमीटर की दूरी पर ककोलत स्थित है।

प्रजातंत्र द्वार
नवादा जिला मुख्यालय के प्रजातंत्र चौक पर स्थित प्रजातंत्र द्वार को देश की स्वतंत्रता का प्रतीक चिह्न माना जाता है। स्वतंत्रता पश्चात् प्रजातंत्र द्वार का निर्माण स्वर्गीय कन्हाई लाल साहु ने करवाया था। 26 जनवरी 1950 को पूर्ण रूप से निर्मित यह द्वार आज भी लोगों में भारतीय स्वतंत्रता के प्रति जज्बा पैदा करता है।
हंडिय़ा सूर्यमंदिर
नवादा जिले के नारदीगंज प्रखंड के हंडिय़ा गांव स्थित सूर्य नारायण धाम मंदिर काफी प्राचीन है। यह उन ऐतिहासिक सूर्य मंदिरों में से है जो लोगों की आस्था का प्रतीक बना है। मंदिर के आस-पास की गई खुदाई के समय प्रतीक चिन्ह और पत्थर के बने रथ मार्ग की लिंक के अवशेष प्राप्त हुए थे। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध द्वापर युग से रहा होगा। मंदिर के समीप एक तालाब स्थित है। ऐसा मान्यता है कि इस पानी में स्नान करने पर कुष्ठ रोग दूर हो जाते हैं। प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में लोग यहाँ तालाब में स्नान एवं सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
बाबा की मजार व हनुमान मंदिर
पटना-रांची मुख्य मार्ग पर नवादा में एकसाथ स्थित हजरत सैयद शाह जलालुद्दीन बुखारी की मजार और रामभक्त हनुमान मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। शुक्रवार के दिन बाबा के मजार पर यहाँ के हिन्दू व मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग चादर चढ़ाकर मन्नते मांगते हैं। वहीं प्रत्येक मंगलवार को हनुमान मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ देखी जा सकती है। वैशाख शुक्ल पक्ष के अक्षय तृतीया को प्रत्येक वर्ष मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जाता है। अजमेर शरीफ के उर्स के तुरंत बाद बाबा के मजार पर विशाल उर्स हर साल मनाया जाता है।
सीतामढ़ी
नवादा जिला मुख्यालय के दक्षिण-पश्चिम में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर सीतामढ़ी स्थित है। प्राचीन काल से ही यह जगह एक प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यहां 16 फीट लम्बी और 11 फीट चौडी प्राचीन गुफा है। एक गोलनुमा चट्टान को काटकर कंदरा बनाया गया है जिसके भीतर पत्थरों पर पॉलीश की गयी है। पॉलीश के आधार पर इस गुफा को मौर्य कालीन माना जाता है। प्रचलित मान्यता है कि गुफा का निर्माण मानिक सम्प्रदाय के साधुओं को आश्रय देने के लिए किया गया था। किंतु स्थानीय लोग इसे निर्वासन काल में सीता का निवास स्थल मानते हैं। गुफा के भीतर देवी लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित है। गुफा के बाहर की ओर एक चट्टान दो भागों में विभाजित है। इसे भी सीता जी के धरती में समाने की घटना से जोड़ा जाता है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोगों का मानना है कि यह लव-कुश की जन्मभूमि है।
सेखोदेवरा
जिला मुख्यालय से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेखोदेवरा गांव है प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत मनोहर एवं दर्शनीय है। सेखो और देवरा नामक दो टोलों को मिलाकर सेखोदेवरा गांव बना है। गांव में सर्वोदय आश्रम है जिसकी स्थापना 1952 ई. में जयप्रकाश नारायण ने की थी। आश्रम से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित जंगल के बीच एक चट्टान को जेपी चट्टान के नाम से जाना जाता है। 1942 के स्वाधीनता आंदोलन के समय हजारीबाग जेल से भागकर प्रसिद्ध नेता एवं क्रांतिकारी स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण इन्ही चट्टानों के पास आकर छिपे थे।
नारद संग्रहालय
नारद संग्रहालय भारत के प्रमुख संग्रहालयों में से है। वर्ष 1973 ई. में नवादा के प्रथम जिला अधिकारी नरेन्द्र पाल सिंह के प्रयासों से यह संग्रहालय अस्तित्व में आया। संग्रहालय की इमारत दोमंजिला है। इसके प्रथम तल में भारत में प्राचीन सिक्कों के विकास को प्रदर्शित किया गया है। प्रारम्भिक पंच-मार्क सिक्कों से लेकर मुगल-कालीन सिक्कों के भारत में क्रमिक विकास को संग्रहालय में देखा जा सकता है। सोनसा गढ़ से प्राप्त मौर्य.कालीन हड्डी कलाकृति, शुंगकालीन मृमूर्तियां, मनके, मुहर एवं धातु निर्मित कलाकृतियों को संग्रहालय के विभिन्न दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है। सोनसा गढ़ की खोज नारद संग्रहालय की एक उपलब्धि के रूप में माना जाता है। इसके अतिरिक्तए संग्रहालय में देवनगढ़ से प्राप्त मंजूश्री की प्रतिमा और धातु मूर्तियों में बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां प्रदर्शित की गई है। स्व. हीरालाल बबन जी द्वारा मुगलकालीन तलवार, कटार, ढाल के साथ ही प्रसिद्ध फारसी शायर हाफिज के शेर को चित्रों में उतारा गया है।

गुनियाजी तीर्थ
गुनियाजी तीर्थ नवादा जिले के गुनियाजी गांव में स्थित है। यह मंदिर जैन मुनि गंधार गौतम स्वामी को समर्पित है। माना जाता है कि गौतम स्वामी, महावीर जी के शिष्य थे। इसकी स्थापना जैनियों द्वारा की गई थी। यह प्राचीन मंदिर भगवान महावीर के समय का है। वर्तमान समय में इस मंदिर की देखरेख श्री जैन श्वेताम्बर भंडार ट्रस्ट कर रहा है।
शेख चिश्ती की दरगाह
जिले के हिसुआ प्रखंड में नरहट शेखपुरा में मध्यकालीन मुस्लिम सूफी संत ख्वाजा अब्दुल्ला चिश्ती की मजार हिंदुओं एवं मुस्लिम समुदाय के लिए श्रद्धा का स्थल है।
आवागमन
वायु मार्ग

यहाँ का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना स्थित जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। नवादा से इसकी दूरी 98 किलोमीटर है।
रेल मार्ग
भारत के कई प्रमुख शहरों से रेलमार्ग द्वारा नवादा पहुंचा जा सकता है। गया-झाझा रेलखंड की बड़ी लाईन नवादा होकर गुजरती है। हिसुआ, नवादा, बाघी-बरडिहा, वारसलीगंज, बौरी-भोजवां जिले का महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन रेलवे स्टेशन है। यहाँ से गया, झाझा, किऊल एवं रामपुरहाट के लिए पाँच जोड़ी गाडिय़ाँ चलती है। 3024/3023 हावड़ा-गया एक्सप्रेस यहाँ से गुजरनेवाली महत्वपूर्ण गाड़ी है।
सड़क मार्ग
नवादा सड़क मार्ग द्वारा बिहार के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-31 (अमरपुर-नवादा-सियाडिह-दिबौर खंड) एवं 85 ;तुंगी.हिसुआ.बानगंगाद्ध जिले से होकर गुजरती है जिनकी कुल लंबाई लगभग 83 किलोमीटर है। राजकीय राजमार्ग संख्या-8,70 एवं 82 का कुल 137.6 किलोमीटर एवं प्रमुख जिला सड़क का 106.4 किलोमीटर नवादा से होकर गुजरता है। हिसुआ एवं नवादा से गुजरनेवाली राजकीय राजमार्ग संख्या-8 की लंबाई 31 किलोमीटर एवं मुरली पहाड़ी, रजौली होकर गुजरनेवाली राजकीय राजमार्ग संख्या-70 21 किलोमीटर लंबी है।

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