Wednesday 2 January 2013

चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल चंपारण



चंपारण का नाम चंपा-अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल। पूर्वी चम्पारण के उत्तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्पारण जिला है। महाकाव्य काल से लेकर आज तक चंपारण का इतिहास गौरवपूर्ण एवं महत्वपूर्ण रहा है। पुराण में वर्णित है कि यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त ध्रुव ने यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी। एक ओर चंपारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है वहीं दूसरी ओर आधुनिक भारत में गाँधीजी का चंपारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है। राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जानकीगढ, जिसे चानकीगढ भी कहा जाता हैए राजा जनक के विदेह प्रदेश की राजधानी थी। जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। भगवान बुद्ध ने यहाँ अपना उपदेश दिया था जिसकी याद में तीसरी सदी ईसापूर्व में प्रियदर्शी अशोक ने स्तंभ लगवाए और स्तूप का निर्माण कराया। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद मिथिला सहित समूचा चंपारण प्रदेश कर्नाट वंश के अधीन हो गया। मुसलमानों के अधीन होने तक तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय चंपारण के ही एक रैयत एवं स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गाँधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध मेंसत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। आजा़दी की लड़ाई में यह नए चरण की शुरूआत थी। बाद में भी बापू कई बार यहाँ आए। अंग्रेजों ने चंपारण को सन 1866 में ही स्वतंत्र इकाई बनाया था लेकिन 1971 में इसका विभाजन कर पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण बना दिया गया। तिरहुत का अंग होने पर भी अलग भाषा तथा भौगोलिक विशिष्टता के चलते चंपारण की संस्कृति बज्जिका भाषी क्षेत्रों से थोड़ा भिन्न है। जिले के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोली जाती है लेकिन हिंदी और उर्दू शिक्षा का माध्यम है। शादी-विवाह या अन्य मांगलिक अवसरों पर भोजपुरी संगीत कार्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होता है। कभी नील की खेती के लिए जाने जानावाला जिला अब अच्छी किस्म के चावल और गुड़ के लिए प्रसिद्ध है। अपरिचितों का स्वागत भी गुड़ और पानी से किया जाता है।

पर्यटन स्थल

केसरिया का बौद्ध स्तूप

मोतिहारी से 35 किलोमीटर दूर साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है। 1998 में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा उत्खनन के उपरांत इस जगह का पर्यटन और ऐतिहासिक रूप से महत्व बढ़ गया है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यह बौद्ध स्तूप दुनिया की सबसे ऊँचा स्तूप है। यह स्थान राजधानी पटना से 120 किलोमीटर और वैशाली से 30 मील दूर है। मूल रुप में 150 फीट ऊँचे इस स्तूप की ऊँचाई सन 1934 में आए भयानक भूकंप से पहले 123 फीट थी। भारतीय पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार जावा का बोराबुदूर स्तूप वर्तमान में जहाँ 103 फीट ऊँचा है वहीं केसरिया स्थित इस स्तूप की ऊंचाई 104 फीट है। विश्व धरोहर में शामिल सांची का स्तूप की ऊंचाई 77.50 फीट ही है। इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए बिहार सरकार केंद्र की मदद से इसे एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रही है। बिहार पर्यटन में केसरिया का महत्व बढ़ता ही जा रहा है।
लौरिया नन्दनगढअरेराज अनुमंडल के लौरिया गांव में स्थित अशोक स्तंभ की ऊंचाई 36.5 फीट है। इस स्तंभ (बलुआ पत्थर से निर्मित) का निर्माण 249 ईसा पूर्व सम्राट अशोक के द्वारा किया गया था। इसपर प्रियदर्शी अशोक लिखा हुआ है। इसके आधार का व्यास 41.8 इंच तथा शिखर का व्यास 37.6 इंच है। इस स्तंभ को स्तंभ धर्मलेख के नाम से भी जाना जाता है। सम्राट अशोक ने इसमें अपने 6 आदेशों के संबंध में लिखा है। स्तंभ का वजन (जमीन से ऊपर का हिस्सा) 34 टन के आसपास है। अनुमान के अनुसार इस स्तंभ का कुल वजन 40 टन है। कहा जाता है कि इस स्तंभ के ऊपर जानवर की मूर्ति थी जिसको कोलकाता संग्रहालय भेज दिया गया है। इस स्तंभ पर लिखा हुआ आदेश 18 लाइनों में है।
गाँधी स्मारक (मोतिहारी)
चम्पारण की शान का प्रतीक गांधी मेमोरियल स्तंभ का शिलान्यास 10 जून 1972 को तत्कालीन राज्यपाल डीके बरूच के द्वारा किया गया था। 18 अप्रैल 1978 को वरिष्ठ गांधीवादी विद्याकर कवि ने इस स्तंभ को राष्ट्र को समर्पित किया। इस स्तंभ का निर्माण महात्मा गांधी के चंपारण सत्?याग्रह की याद में शांति निकेतन के मशहूर कलाकार नन्द लाल बोस के द्वारा किया गया। चुनार पत्थर से निर्मित इस स्तंभ की लंबाई 48 फीट है। स्मारक का निर्माण ठीक उसी जगह किया गया है जहां गाँधीजी को 18 अप्रैल 1917 में धारा 144 का उल्लंघन करने के जुर्म में अनुमंडलाधिकारी की अदालत में पेश किया गया था।
जॉर्ज ऑरवेल स्मारक
अंग्रेजी साहित्य के महान लेखक जॉर्ज ऑरवेल का जन्म 25 जून 1903 को मोतिहारी में हुआ था। उस समय उनके पिता रिचर्ड वेल्मेज्ली ब्लेयर चंपारण के अफीम विभाग में सिविल अधिकारी थे। जन्म के कुछ दिनों के बाद ऑरवेल अपनी माँ और बहन के साथ इंगलैंड चले गए जहाँ उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही लेखन आरंभ किया। उनकी लिखी कुछ पुस्तकें अंग्रेजी साहित्य की महान कृति है। वर्ष 2004 में रोटरी क्लब मोतिहारी तथा जिला प्रशासन के प्रयास से उनके जन्म स्थल की दशा सुधार कर वहाँ एक फलक लगाया गया जिसपर उनका संक्षिप्त जीवन चरित लिखा है।
रामगढ़वा उच्च विद्यालयतारकेश्वर नाथ तिवारी द्वारा बनवाया गया हाई स्कूल पूर्वी चम्पारण के रामगढ़वा में है। इस स्कूल ने ग्रामीण इलाके में शिक्षा का सूत्रपात किया। कई आएएस, आईपीएस, डॉक्टर, अभियंता बने यहां के छात्र आज भी यहां आते हैं और तारकेश्वर नाथ तिवारी को याद करते हैं।
अन्य स्थल
सोमेश्वर महादेव मंदिर

मोतिहारी शहर से 28 किमीण् दूर दक्षिण.पश्चिम में स्थित अरेराज में भगवान शिव का प्रसिद्व मंदिर है जो सोमेश्वर शिव मंदिर कहलाता है। श्रावणी मेला (जुलाई-अगस्त) के समय केवल चंपारण से ही नहीं वरन नेपाल से भी हजारों की संख्या में भक्तगण भगवान शिव का जलाभिषेक करने यहाँ आते है।
सीताकुंड
 मोतिहारी से 16 किमी दूर पीपरा रेलवे स्टेशन के पास यह एक पुराने किले के परिसर में सीताकुंड स्थित है। माना जाता है कि भगवान राम की पत्नी सीता ने त्रेतायुग में इस कुंड में स्नान किया था। इसके किनारे भगवान सूर्य, देवी दुर्गा, हनुमान सहित कई अन्य मंदिर भी बने हुए है। रामनवमी के दिन यहाँ एक विशाल मेला लगता है। हजारों की संख्या में इस दिन लोग भगवान राम और सीता की पूजा अर्चना करने यहां आते है।
चंडीस्थान (गोविन्दगंज)
हुसैनी जलविहार

No comments:

Post a Comment