Thursday 3 January 2013

धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध मधेपुरा


धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध मधेपुरा बिहार राज्य का एक जिला है। चंडी स्थान, सिंघेश्वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं। मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से सम्बन्धित है। प्राचीन समय में भांत समुदाय के लोग शंकरपुर खंड स्थित बसंतपुर और रायभीर गांव में रहते थे। मधेपुरा मौर्य वंश का ही एक हिस्सा था। इस बात का प्रमाण उद-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ में मिलता है। अकबर के समय की मस्जिद वर्तमान समय में सारसंदी गांव में स्थित है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है। इसके अतिरिक्त, सिंकदर शाह भी इस जिले में घूमने के लिए आए थे। इसका जिला मुख्यालय मधेपुरा शहर है। यह जिला अररिया और सुपौल जिले के उत्तर, खगरिया और भागलपुर जिले के दक्षिण, पूर्णिया जिले के पूर्व तथा सहरसा जिले के पश्चिम से घिरा हुआ है
कहा जाता है कि पौराणिक काल में कोशी नदी के तट पर ऋषि श्रृंग का आश्रम था। ऋषि श्रृंग भगवान शिव के भक्त थे और वह आश्रम में भगवान शिव की प्रतिदिन उपासना किया करता था। श्रृंग ऋषि के आश्रम स्थल को श्रृंगेश्वर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय बाद इस उस जगह का नाम बदलकर सिंहेश्वर हो गया। महाजनपद काल में मधेपुरा अंग एवं मौर्य वंश का हिस्सा था। इसका प्रमाण उदा-किशनगंज स्थित मौर्य स्तम्भ से मिलता है। बाद के वर्षों में मधेपुरा का इतिहास कुषाण वंश के शासनकाल से सम्बन्धित है। शंकरपुर प्रखंड के बसंतपुर तथा रायभीर गांवों में रहने वाले भांट समुदाय के लोग कुशान वंश के परवर्ती हैं। मुगल शासक अकबर के समय की मस्जिद वर्तमान समय में सारसंदी गांव में स्थित है, जो कि इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त, सिंकंदर शाह भी इस जिले में घूमने के लिए आए थे।

प्रसिद्ध स्थल

सिंहेश्वर स्थान

यह मधेपुरा से आठ किलोमीटर उत्तर में समपूर्ण कोसी अंचल का महान शैव तीर्थ है। यहाँ का शिवलिंग अत्यंत प्रचीन है। वराहपुराण के उत्तर्राद्ध की एक कथा के अनुसार विष्णु ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। सिंहेश्वर के निकट ही कोसी तट पर सतोखर गांव है, जहाँ श्रृंग ऋषि ने 'द्वादश वर्षीय यज्ञÓ किया था जिसमें गुरुपत्नी अरुनधती के साथ राम की तीन माताएं आई थीं। इस यज्ञ का उल्लेख भवभूति ने 'उत्तर रामचरितÓ के प्रथमांक में किया है। इस यज्ञ के सारे साक्ष्य कोसी तीर पर सात कुंडों के रूप में मौजूद हैं । दो कुण्ड कोसी के पेट में समा गये हैं। खुदाई में राख के मोटी परत प्राप्त हुई है जो दीर्धकाल तक होने वाले यज्ञ के साक्ष्य हैं। सिंधेश्वर स्थान में तीन आर्योत्तर जातियाँ कुशाण, किरात और निषादों की संस्कृति का पुरा काल में ही विकास हुआ और यह शैव तीर्थ आदि काल से ही उन्हीं के द्वारा पुजित, संरक्षित एवं संरक्षित होता रहा।
श्रीनगर
मधेपुरा शहर से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पश्चिम में स्थित श्रीनगर एक गांव है। इस गांव में दो किले हैं। माना जाता है कि इनसे से एक किले का इस्तेमाल राजा श्री देव रहने के लिए किया करते थे। किले के पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर दो विशाल कुंड स्थित है। जिसमें पहले कुंड को हरसैइर और दूसर कुंड को घोपा पोखर के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त यहां एक मंदिर भी है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में स्थित पत्थरों से बने स्तंभ इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ाते हैं।
रामनगर
मुरलीगंज रेलवे स्टेशन से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर रामनगर गांव है। यह गांव विशेष रूप से यहां स्थित देवी काली के मंदिर के लिए जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष काली-पूजा के अवसर पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
बसन्तपुर
मधेपुरा के दक्षिण से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर बसंतपुर गांव स्थित है। यहां पर एक किला है जो कि पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है। माना जाता है कि यह किला राजा विराट के रहने का स्थान था। राजा विराट के साले कीचक, द्रौपदी से यह किला छिन लेना चाहते थे। इसी कारण भीम ने इसी गांव में उसको मारा था।
बिराटपुर
 यह गांव देवी चंडिका के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर का सम्बन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि इस मंदिर का प्रमुख द्वार विराट के महल की ओर है। 11वीं शताब्दी में राजा कुमुन्दानंद के सुझाव से इस मंदिर के बाहर पत्थर के स्तम्भ बनवाए गए थे। इन स्तम्भों पर अभिलेख देखे जा सकते हैं। सोनबरसा रेलवे स्टेशन से लगभग नौ किलोमीटर की दूरी पर बिराटपुर गांव है। इस बात में कोई शक नहीं है कि यह मंदिर काफी प्राचीन है। इसके साथ ही यहां पर दो स्तूप भी है। लगभग 300 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में काफी संख्या में भक्तों की भीड़ रहती है। मंदिर के पश्चिम से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा पर्वत है। लोगों का मानना है कि कुंती और उनके पांचों पुत्र पांडव इस जगह पर रहे थे।
बाबा करु खिरहर बाबा करु खिरहर मंदिर का नाम एक प्रसिद्ध संत के नाम पर रखा गया था। बाबा करु खिरहर मंदिर महर्षि खण्ड के महपुरा गांव में स्थित है। आसाम,बंगाल, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के आस-पास के जिलों से काफी संख्या में लोग यहां आते हैं।
कन्दहा का सूर्य मन्दिर
यह इस क्षेत्र का एकमात्र सूर्य मन्दिर है। यहाँ धेमुरा (धर्ममूला) नदी एक बड़े चैड़़े से आकार कन्दाहा और देवनगोपाल गाँव के मध्य होकर बहती है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने विवेक, बुद्धि तथा अदम्य संकल्प शक्ति का प्रतीक अपने तृतीय नयन से कामदेव का दहन किया था जिसमें सूर्य का तेज था। कन्दाहा में द्वादशादित्यों में प्रसिद्ध 'भवादित्यÓ का प्राचीन सूर्य मन्दिर है। यह कन्दर्प दहन का साक्षी भी है तथा अंग देश के निर्माण का श्रेय भी इसी स्थल को है। कन्दाहा के चारों ओर अनेक शिव मंदिर हैं जिसमें देवनवन महादेव अति विख्यात हैं। इस शिवलिंग को महाभारत के पश्चात वाणासुर ने स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त चैनपुर में नीलकंठ महादेव, बनगाँव में भव्य शिव मंदिर महिषी के निकट नकुचेश्वर महादेव तथा मुख्य कोसी के पश्चिम कुश ऋषि द्वारा स्थापित कुशेश्वरनाथ का भव्य मंदिर महतवपूर्ण है ।
आवागमन
वायु मार्ग
यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा पटना स्थित जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। पटना से मधेपुरा 234 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग
मधेपुरा रेलमार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन दौराम मधेपुरा है।
सड़क मार्ग
भारत के कई प्रमुख शहरों शहरों से मधेपुरा सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर-31 से होते हुए मधेपुरा पहुंचा जा सकता है।

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